आधा है चंद्रमा — एक विहंगम दृष्टि
Publisher:
बोधरस प्रकाशन
Price:
₹340
Pages:
240
ISBN:
978-9394704619
वरिष्ठ लेखिका रेणु गुप्ता का एक सौ एक विचारोत्तेजक लघुकथाओं का नायाब संकलन ‘आधा है चंद्रमा’ नर्म जज़्बातों और तल्ख़ एहसासात से परिपूर्ण है, जो समाज में व्याप्त विसंगतियों पर प्रहार करने के साथ साथ पाठकों को उनकी बाबत सोचने पर मजबूर करता है।
पद्मश्री अशोक चक्रधर जी के अनुसार ‘इस संकलन की लघुकथाओं की खासियत यह है कि लगभग सभी गहन सामाजिक जागरूकता के साथ भावप्रधान हैं।’उन के अनुसार ‘रेणु गुप्ता अपने सौंधे एहसासों में छिपी हुई भारी-भरकम सोच को सतत जनमानस तक पहुंचा रही हैं, जो परिवार, समाज और रिश्तों-नातों में पैठी हुई विसंगतियों के प्रतिक्रियास्वरूप उनमें आत्मग्लानि का भाव तो लाये, लेकिन उसको इच्छा भर कम भी कर दे।’
नामचीन लघुकथा मर्मज्ञ श्रीमती कांता रॉय के अनुसार ‘रेणु गुप्ता के प्रथम लघुकथा संकलन ‘आधा है चंद्रमा’ की लघुकथाओं का फ़लक विषयों में विविधता के वैशिष्ट्य से समृद्ध है, साथ ही वह महिलाओं की समस्याओं को प्रतिबिंबित करने में सफल रही हैं। उनके अनुसार उनकी लघुकथाओं में भाषाई सौंदर्य के साथ दर्शन बोध, आध्यात्मिकता को स्थापित करते हुए मौलिक चिंतन को भी प्रश्रय मिला है।’
रेणु गुप्ता द्वारा रचित लघुकथा संकलन ‘आधा है चंद्रमा’ पर कुछ विद्वज्जन की प्रतिक्रियाएँ:
सौंधे अहसासों में छिपी भारी भरकम सोच को प्रतिबिम्बित करती हैं रेणु गुप्ता की लघुकथाएँ।
मैंने उनकी सात – आठ लघुकथाएँ एक सांस में पढ़ डालीं। अगर दरवाजे पर घंटी नहीं बजी होती, तो मैं और भी पढ़ डालता। बहरहाल बाद में मैंने उनकी सारी लघुकथाएँ पढ़ीं, और मैं उन पर अपनी प्रतिक्रिया देने से स्वयं को नहीं रोक पा रहा हूं।
सारी लघुकथाएं बेहतरीन हैं। उन सबके विषय भिन्न हैं। उनकी खासियत यह है कि लगभग सभी गहन सामाजिक जागरूकता के साथ भावप्रधान हैं, और मर्म को छूने वाली हैं।
मैं उन्हें हृदय से बधाई देता हूँ कि वह अपने सौंधे अहसासों में छिपी हुई भारी भरकम सोच को सतत जनमानस तक पहुंचा रही हैं, जो परिवार, समाज और रिश्तों नातों में पैठी हुई विसंगतियों के प्रतिक्रियास्वरूप उनमें आत्मग्लानि का भाव तो लाये, लेकिन उनको इच्छा भर कम भी कर दे।
मेरी शुभकामनाएँ उनके प्रथम लघुकथा संग्रह ‘आधा है चंद्रमा’ के लिए।
पद्मश्री अशोक चक्रधर
रेणु जी की लघुकथाओं की भाषा सरल, प्रवाहमयी तथा सर्वग्राह्य है, कहीं क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग इसे उबाऊ नहीं बनाताl लघुकथाओं में पात्रों की अधिकता नहीं है, आवश्यकतानुसार ही पात्रों को रखा गया हैl संवाद रोचक तथा तर्कपूर्ण हैंl
शिल्प तथा शैली की दृष्टि से भी कथाओं में कसावट हैl कथाओं के विषय समाज की छोटी-बड़ी विभिन्न समस्याओं से पाठक का साक्षात्कार कराते हैं। समस्याओं से यूँ तो पाठक भी परिचित हैं, किन्तु लेखिका ने समस्याओं को खोल कर धार बना कर पाठक का ध्यान उस ओर आकर्षित किया है l
उल्लेखनीय बात यह है कि बात को संक्षेप में किन्तु प्रभावशाली ढंग से कहा गया हैl कथाओं में लघुत्व है, किन्तु कथ्य का विकास उसकी पूर्णता में चित्रित हुआ है, जो पाठक पर दीर्घकालीन प्रभाव डालता है l
सदानंद कवीश्वर
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रेणु गुप्ता के लघुकथा संकलन, ‘आधा है चंद्रमा’ की कुछ चुनिन्दा लघुकथाओं के अंश:
अभी शाम को आयेगा, तो उसके लिए उसका मनपसंद गजरा, डार्क चॉकलेट्स और पेस्ट्रीज़ लेकर आयेगा। सॉरी... सॉरी... की रट लगा देगा। उसके आँसुओं से मलिन चेहरे पर अपने स्नेह चिह्नों की बौछार कर देगा। स्वयं उसकी वेणी में गजरा लगाएगा। अपने हाथों से मनुहार कर उसे चॉकलेट्स और पेस्ट्रीज़ खिलाएगा। चाहेगा कि वह उसका चाँटा भूल जाए। अनदेखा कर दे अपना अपमान। जब तक वह मुस्कुरा नहीं देगी, उसके आगे-पीछे घूमेगा। अपनी बे-इंतिहा मोहब्बत से उसे गले तक भिगो देगा।
“पंचायत क्या कहेगी? उससे पहले तो मैं अपना फ़ैसला सुनाती हूँ। तुझे मेरे साथ ही रहना होगा। दूसरी को छोड़ना होगा हमेशा के लिए, मेरी ख़ातिर, अपने बच्चों के वास्ते। ये बच्चे क्या मैं दहेज में लाई थी?” कहते हुए सिद्धा परमा, अपने पति का हाथ पकड़ भरी पंचायत से उसे खींचते हुए अपनी झुग्गी में ले आई। उसके सीने पर ताबड़तोड़ मुक्के मारते सुबकते हुए बोली, “क्यों किया रे निर्मोही ऐसा? तुझे उस दूसरी को बियाहते वक्त जरा मेरा ख़याल नहीं आया? कितना भरोसा था मुझे तेरे प्यार पर, तेरी चाहत पर। मेरा भरम तोड़ दिया रे तूने,” और फिर उसे बाँहों में कस वह हो... हो... कर बिलख उठी।
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