धूपछांव

आज लेफ्टिनेंट कर्नल चंदन का जन्मदिन है। अमृता, उसकी पत्नी ने उसके जन्मदिन पर एक शानदार पार्टी रखी है। लेकिन चंदन को इसके बारे में उसने कुछ भी नहीं बताया है। अमृता अपने घर के ड्राइंग रूम को पार्टी के लिए सजा रही थी। हर ओर चंदन के पसंदीदा सुर्ख लाल गुलाब के फूलों की मालाओं से सजा धजा कमरा अत्यंत सुंदर लग रहा था। ‘बस यह गुलदस्ता इस गुलदान में और लगा दूं और फिर मेरा काम खत्म,’ उसने सोचा। कमरे की भव्य सजावट देख अमृता प्रसन्न मन मुस्कुरा उठी।

‘‘अभी तो रसोई में इतने काम करने हैं,’’ यह सोचकर अमृता तेज चाल से रसोई में पहुंची। वहां दो तीन अर्दली विभिन्न तरह के पकवान बनाने में व्यस्त थे। आज की रात की पार्टी का मेन्यू था, पिंडी छोले, हरी मे डले भटूरे, गोभी मटर टमाटर की पावभाजी, उड़द की दाल की खस्ता कचोरियां, पालक चने की दाल के हरियाले कबाब और वेजिटेरियन बिरयानी। यह सब देख चंदन कितना खुश होगा। मन ही मन यह सोच अमृता भी खुश हो गई ।

पिछले एक माह से चंदन स्पेशल ड्यूटी पर कश्मीर गया हुआ था। यह एक माह कैसे घोर उद्विग्नता और बेचैनी में कटा था, उसे ही मालूम है। फ़ौज द्वारा उसे कश्मीर में तैनात किया गया था। पिछला पूरा माह भारत पाकिस्तान के मध्य बेहद तनाव पूर्ण स्थिति में बीता था। आए दिन पाकिस्तानियों से प्रत्यक्ष मुठभेड़ होती रही । यह सब देख सुनकर अमृता की सांस गले में अटकी हुई । दिन दिन भर ईश्वर से चंदन की सलामती की दुआ मांगती। सोते जागते, उठते बैठते बस एक ही प्रार्थना उसके होठों पर रहती, ‘‘हे परमात्मा, चंदन की रक्षा करना। उसे सही सलामत वापस मेरे पास भेज देना। मैं तुझसे और कुछ नहीं मांगती भगवन, सिर्फ और सिर्फ चंदन की खैरियत मांगती हूं।’’

लेकिन उस दिन ईश्वर ने उसकी एक नहीं सुनी। पार्टी में आमंत्रित सभी मेहमान नियत वक्त पर आ गए थे लेकिन रात के दस बजने आए थे, चंदन अभी तक नहीं आया था। हर किसी के आशंका ग्रस्त मन में सिर्फ एक ही सवाल उठ रहा था, बॉर्डर पर कोई अनहोनी ना हो गई हो। आज सुबह ही तो चंदन ने उसे फोन पर कहा था,... ‘‘मैं दोपहर तक घर पहुंच जाऊंगा। फिर शाम को हम सब होटल साथ खाना खाने चलेंगे।’’

घोर घबराहट और विकलता में अमृता के हाथ पैर ठंडे पड़ गए। चंदन के समय से पार्टी में न पहुंचने पर सबके दिलों में मायूसी छा गई। किसी तरह आधे अधूरे मन से सबने भोजन किया था। चंदन के कुछ घनिष्ठ मित्रों, मृदुल, परितोष, रोहित और उनके परिवारों ने रात के एक बजे तक चंदन का इंतजार किया। और फिर उसके पार्टी में देर रात तक ना पहुंचने पर सबने अमृता से हिम्मत रखने का वायदा लेकर विदा ली। 

वह रात अमृता ताजिंदगी नहीं भूली। पूरी रात उसने घोर निराशा में करवट बदलते हुए आंखों ही आंखों में काटी। कि सुबह तडक़े ही तो उस पर गाज गिर गई । मृदुल चंदन का सबसे प्रगाढ़ मित्र था। और सुबह सवेरे वह फिर से अमृता के पास पहुंच गया।

आर्मी हेडक्वार्टर से उसके सामने ही फोन आया कि मेजर चंदन सेना के कमांडो की एक टुकड़ी लेकर लड़ते-लड़ते पाकिस्तान के इलाके में चले गए थे लेकिन वहां से नहीं लौटे। उनके साथियों ने उन्हें अंतिम बार दुश्मनों पर गोलियों की बौछार करते देखा था। उसके बाद वे नहीं मिले और उनकी टुकड़ी को उनके बिना ही लौटकर आना पड़ा था। फौज में उनका नाम लापता ऑफिसर की लिस्ट में जारी किया था।

जबसे यह मनहूस खबर आई, अमृता की आंखों से निरंतर अश्रुधारा बह रही थी। उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। मृदुल ने अमृता को भरसक सांत्वना देने का प्रयास किया। लेकिन अमृता का दुख उससे कम नहीं हुआ। हां, उस दिन मृदुल के रूप में उसे एक अभिन्न मित्र अवश्य मिल गया था, जिससे धीरे-धीरे वह अपने मन की हर बात साझा करने लगी ।

चंदन को लापता हुए पांच वर्ष बीत चले थे। यह वर्ष चंदन की याद में रोते रोते कटे थे। उसका निरंतर रोना देखकर उसके माता-पिता ने उसका का पुनर्विवाह करने का निश्चय किया था। उन्होंने उसे दूसरे विवाह के लिए मनाने का भरसक प्रयास किया था। वे उसका विवाह लेफ्टिनेंट कर्नल मृदुल से करना चाहते थे।

मृदुल अमृता की ही उम्र का था। उसे अभी तक अपने उपयुक्त कोई जीवन सहचरी नहीं मिली थी। इसलिए मनभावन जीवन संगिनी की प्रतीक्षा में उसकी आयु बढ़ती ही जा रही । मृदुल शुरु से अमृता को बहुत पसंद करता एवं मित्र पत्नी के तौर पर उसे पूरा मान देता था। अमृता थी भी हर मायनों में आदर्श। अत्यंत मृदु, मीठे स्वभाव की सीधी-सादी युवती, सदैव मुस्कुराती रहती । एक दिन जब बातों ही बातों में अमृता के माता पिता ने अमृता के विवाह का प्रसंग उसके सामने छेड़ा था, मृदुल ने उससे स्वयं विवाह करने की मंशा उन्हें बता दी। लेकिन उनके विवाह में सबसे विकट बाधा स्वयं अमृता की पुनर्विवाह के लिए अनिच्छा थी।

काल का चिरंतन प्रवाह कब किसी के दु:खों, विपदा के बोझ से ठहरा या रुका है? सो वक्त अपनी ही चाल से बीतता गया। विपरीत परिस्थितियां भी अमृता का मनोबल पूरी तरह से तोडऩे में असफल रहीं। मृदुल के साथ सहज मित्रवत व्यवहार एवं माता पिता के संबल से ये पांच वर्ष उसने किसी तरह ठहरते लडख़ड़ाते लंगड़ाती चाल से काट ही लिए । प्रतिकूल हालातों की आग में तपकर उसका व्यक्तित्व कुंदन सा निखरकर आया था। विपत्ति के उस दौर में मृदुल ने उसका साथ कदम कदम पर दिया।

अमृता के मन में मृदुल को लेकर कोई गांठ नहीं थी। वह उससे सहज मित्रवत व्यवहार करती। लेकिन एक दिन उसके माता पिता की मृदुल से विवाह करवाने की वास्तविक मंशा अनचाहे ही उसके सामने जाहिर हो गई।

उस दिन रविवार का दिन था। अमृता के माता-पिता भी उसके घर आए हुए थे। सामान्य बातचीत चल रही कि अचानक अमृता की मां ने मृदुल से कहा था, ‘‘मृदुल बेटा अब तो अमृता का हाथ तुम हमेशा के लिए थाम ही लो, बहुत दुख सहे हैं मेरी बेटी ने इन पांच वर्षों में। बस, अब उससे विवाह कर ही लो।’’

अपनी मां का यह वक्तव्य सुन अमृता मानो आसमान से गिरी । उसने सपने में भी नहीं सोचा कि उसके माता पिता उसका विवाह मृदुल से करने की सोच भी सकते हैं। पहले तो वह उनपर बहुत बिगड़ी, और फिर उसने मृदुल को अत्यंत शांत पर सधे हुए शब्दों में कहा था, ‘‘मृदुल, पिछले पांच वर्षों में तुमने मेरा हर परिस्थिति में भरपूर साथ दिया। तुम्हारी मित्रता अभी तक मेरे जीने का संबल रही है, लेकिन अभी अभी जो कुछ मां ने कहा वह नितांत असंभव है। मैं ताउम्र चंदन की प्रतीक्षा करूंगी। यह मेरा अंतिम निर्णय है। हम दोनों अच्छे मित्र हैं और हमेशा रहेंगे।” अमृता की यह बात सुनकर मृदुल का चेहरा उतर गया और फिर वह वहां ज्यादा देर तक नहीं ठहरा था।

कि तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने अमृता को मृदुल से विवाह करने के लिए विवश कर दिया था। अचानक उसकी मां को दिल का दौरा पड़ा और अत्यंत गंभीर हालत में उन्होंने आईसीयू में अमृता को बुलवाया और कहा था, ‘‘अमृता, तू मृदुल से शादी कर ले। तेरा हाथ मृदुल के हाथों में देखकर मैं चैन से मर सकूंगी। मृदुल बहुत ही सुलझा हुआ अच्छा लडक़ा है। तुझे बहुत खुश रखेगा।’’

विवश अमृता को मां की बात माननी पड़ी । आनन फानन में अमृता और मृदुल ने बिना किसी आडंबर के कोर्ट मैरिज कर ली । मृदुल के मधुर स्नेहिल व्यवहार से अमृता धीरे-धीरे चंदन को भूलने लगी। उसके जीवन में सौभाग्य ने दोबारा दस्तक दी । उनका वैवाहिक जीवन परस्पर प्रेम, समर्पण और विश्वास के सतरंगे रंगों से सजकर अत्यंत सुखद रहा था। 

मृदुल से विवाह के बाद उसकी गोद में एक नन्ही सी, प्यारी परी नैना आ गई जिसने उसके परिवार को पूरा कर दिया था। नेहुल और मनु, चंदन के बच्चे नन्हीं नैना को बेहद लाड़ करते। उसे हाथों हाथ रखते।

यूं देखते देखते 20 वर्षों का लंबा अरसा बीत गया था। कि तभी अमृता के जीवन में कुछ ऐसा अनपेक्षित घटा जिसे देखकर वह घोर मानसिक उहापोह की स्थिति में आ पहुंची ।

20 वर्षों पूर्व चंदन को पाकिस्तानी फौज ने पकडक़र अपनी जेल में कैद कर दिया था, और बीस वर्षों उपरान्त उसे मुक्त कर दिया था। वह इंडिया आ पहुंचा था, यह सोच कर कि पत्नी बच्चों का साथ उसके विक्षुब्ध मन को सुकून देगा। लेकिन बहुत प्रयत्न करने पर भी उसे अमृता नहीं मिली। 

मृदुल का स्थानांतरण सुदूर नागालैंड में हो गया था। अमृता की मां की मृत्यु हो गई और पिता अपना घर छोडक़र अपने बेटे के पास रहने लगे थे। इसलिए चंदन को उनका पता नहीं चल पाया लेकिन अभी भी आशा की एक किरण बाकी थी। 

अमृता एक अत्यंत दक्ष कशीदाकार और चंदन के सामने से ही एक एनजीओ चलाती थी, जिससे वह बेसहारा अनपढ़ महिलाओं को कढ़ाई की कला में प्रशिक्षण दे उन्हें रोजगार मुहैया करवाती थी। वक्त के साथ उसका काम बहुत बढ़ गया और अब उसकी संस्था में करीब सौ महिलाएं कार्य करती थीं। चंदन के समय से ही वह समय-समय पर अनेक मेलों प्रदर्शनियों में अपनी कढ़ाई की हुई साडिय़ां एवं अन्य परिधान प्रदर्शित करती थी। चंदन को पता था कि वह इस तरह मेले और प्रदर्शनियों में भागीदारी करती है। इसलिए वह सभी बड़े मेलों और प्रदर्शनियों में जाने लगा था। कुछ महीनों तक तो वह अमृता का पता नहीं लगा पाया था। लेकिन तभी दिल्ली में एक बड़ी प्रदर्शनी लगने वाली जिसमें अमृता के भाग लेने के पूरे पूरे आसार थे।

उस दिन उसकी दिली तमन्ना पूरी हुई। उस राष्ट्रीय स्तर की बड़ी प्रदर्शनी में उसकी बिछड़ी हुई पत्नी उसे मिल ही गई । उस दिन अमृता अपने स्टॉल में बैठी हुई थी कि अचानक चंदन उसके सामने जाकर खड़ा हो गया।

चंदन को यूं बीस वर्षों बाद अपने सामने अचानक देखकर अमृता हक्की-बक्की रह गई। उसकी जुबान तालू से चिपट कर रह गई। लगभग पांच मिनट तो उसे यह आत्मसात करने में लगे थे कि चंदन जीता जागता उसके सामने खड़ा है। फिर तनिक हकलाते हुए उससे बोली, ‘‘चंदन तुम कहां थे इतने सालों तक? कितना सताया तुमने मुझे,’’ और यह कहते हुए अमृता की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे थे। लेकिन अब उसे धीरे-धीरे अनुभव हो रहा था, चंदन जिंदा है और मृदुल के साथ विवाह कर वह जिंदगी की बहुत बड़ी भूल कर बैठी। अब वह विवाहित है तो चंदन उसकी जिंदगी में दोबारा कैसे शामिल हो सकता है?

तत्क्षण ही अमृता चंदन को अपने घर ले आई । वह सोच रही थी, उसे न जाने कितनी बातें चंदन से करनी थीं। लेकिन अब वह उसकी पत्नी नहीं रही । वह किसी और की ब्याहता थी।

जिंदगी ने उसे घोर अनिश्चय के मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया था। ‘नहीं नहीं, अब चंदन को उसकी गुमशुदगी के दिनों के दौरान उसकी तड़प और पीड़ा को बताने का कोई औचित्य नहीं। उसे अत्यंत सोच समझकर चंदन से बातें करनी होगी। अब मृदुल उसका पति है। उसकी निष्ठा पहले उसके प्रति बनती है। इस पेचीदा परिस्थिति से मृदुल ही निपटेगा।’ यह सोचकर उसने फोन कर मृदुल को फौरन घर आने के लिए कहा।

मृदुल के कमरे में आते ही अमृता ने चंदन से कहा, ‘‘ चंदन यह हैं मेरे पति मृदुल।’’, अमृता के मुंह से निकला ‘पति’ शब्द चंदन के सीने पर भारी हथौड़े सा पड़ा था। उफ, अमृता ने विवाह कर लिया, अब उसका उसपर कोई अधिकार नहीं। सोच सोच कर भीषण तनाव से चंदन के स्नायु तन गए थे। परिस्थिति तनिक बोझिल हो आई। कि बहुत सोचते विचारते हुए मृदुल ने उससे कहा, ‘‘चंदन, अमृता को गलत मत समझना, वह तो इस विवाह के लिए कतई राजी नहीं । तुम्हें लापता हुए पांच वर्ष हो चले थे। तुम्हें तो पता है अमृता कितनी कमजोर दिल की और भावुक है। तुम्हारे जाने के बाद पांचों साल उसने तुम्हारी याद में रो रो कर काटे थे। फिर उसकी मम्मी को हार्ट अटैक पड़ा और गंभीर हालत में उन्होंने अमृता से मुझसे विवाह करवाने का वायदा करवा लिया। और बस हमारी कोर्ट मैरिज हो गई।’’ तनिक हकलाते हुए मृदुल ने चंदन को अमृता से विवाह करने की कैफियत दी।

यह सब सुनकर चंदन को लग रहा था मानो उसकी दुनिया उजड़ गई थी, जिसमें आशा की कोई लौ ना बची थी। इतने वर्षों से अमृता से फिर से मिलने की आस ने पिछले बीस वर्षों की कैद की अवधि में उसकी जिजीविषा को जगाए रखा था। लेकिन आज उसे अपना जीवन बेअर्थ और बेमानी लग रहा था।

फिर मृदुल ने वातावरण को हल्का फुल्का करने के उद्देश्य से चंदन के लिए खाना बनवाया और मनुहार कर उसे खाना खिलाकर विदा किया था। अमृता और चंदन के दोनों बच्चे मनु और नेहुल पूरे 20 वर्षों बाद पिता से मिले थे एक अरसे बाद उनसे मिलने पर उनकी खुशी की इंतिहा नहीं । नैना को भी स्नेहिल ऊष्मा से भरपूर चंदन बहुत अच्छा लगा था। उस दिन चंदन के कहने पर अमृता ने तीनों बच्चों को उसके साथ भेज दिया, यह सोचते हुए कि बच्चों के साथ उसे अच्छा लगेगा।

चंदन अमृता के घर से अपना सबकुछ दुर्देव के हाथों गंवाकर अत्यंत भारी मन से लुटा पिटा अपने घर लौटा था। उसके आधे अधूरे जीवन में आशा की कोई लौ थी तो वह उसके बच्चे थे ।

घर लौटकर वह मन ही मन दोहरा रहा था, ‘‘अमृता, जन्म-जन्मांतर के इस रिश्ते को तुमने यूं ही तोड़ दिया। तनिक भी नहीं सोचा कि अगर मैं लौटकर आया तो तुम्हें शादीशुदा देखकर मेरा क्या होगा?”

लेकिन स्थिति का तर्कसंगत विश्लेषण करने पर उसने सोचा, ‘उसने पांच वर्षों तक उसकी प्रतीक्षा की। फिर यदि उसने विवाह कर भी लिया तो उसमें उसका क्या दोष?’

इतने अरसे बाद वह रात बच्चों से ढेर सारी बातें करते हुए बीती । उस रात कोई भी नहीं सोया था। इतनी बातें थीं कहने और सुनने के लिए। बच्चों ने ही उसे उन 5 वर्षों में अमृता की उसके लिए छटपटाहट के बारे में बताया कि इस अवधि में शायद एक भी दिन ऐसा नहीं बीता जिस दिन अमृता रोई ना हो। बच्चों के साथ बातचीत कर एक क्षण उसका मन बहलता तो दूसरे ही क्षण अमृता को सदा के लिए खो देने का दर्द भरा यथार्थ उसे गहन निराशा के गर्त में धकेल देता।

धीरे-धीरे वक्त के साथ चंदन ने परिस्थितियों के साथ समझौता करना सीख लिया। अंत में वह मन को यह समझाने में सफल हुआ कि, ‘हम इंसानी कठपुतलियों की डोर तो प्रारब्ध के हाथों में है। जैसा नियति चाहती है, हमें नचाती है। प्रारब्ध की इच्छा के आगे हम इंसान पूरी तरह से लाचार हैं।’ उसने अपने आपको ईश्वर की इच्छा के आगे सुपुर्द कर दिया और बच्चों में अपना मन लगाने की कोशिश की ।

इधर चंदन के वापस लौटकर आने के बाद मृदुल भी अत्यंत विचलित अनुभव कर रहा था। वह घोर दुविधा में पड़ गया था। वह सोच रहा था, कि परिस्थितियों के इस मोड़ पर आकर एक दूसरे को देख देखकर अमृता और चंदन नाहक ही पीड़ा पाएंगे। लेकिन यदि वह अपना स्थानांतरण भी करवा लेता है तो चंदन अपने बच्चों से दूर हो जाएगा। जो इन हालातों में चंदन और बच्चों की प्रति घोर अन्याय होगा।

शुरू शुरू में तो मृदुल हर छुट्टी के दिन चंदन को दोनों वक्त के भोजन के लिए आमंत्रित कर देता था।

अमृता से सामना होने पर उसकी आंखों में उसके लिए उमड़ते दर्द भरे प्यार के सागर को देख चन्दन भीतर ही भीतर हिल उठता। दोनों ने कभी मर्यादा की लक्ष्मण रेखा नहीं लांघी । वे दोनों हर पल हर क्षण सचेत रहते कि कोई भी व्यक्तिगत बात ना करें लेकिन एक दूसरे की उपस्थिति में दोनों आंखों ही आंखों में कितनी ही अनकही बातें, शिकवे शिकायतें कर लेते और दोनों पूर्व पति पत्नी का एक दूसरे को खोने का दर्द दोनों की आंखों में उमड़ा पड़ता जिसके चलते दोनों ही कई बार एक दूसरे से आँखें चुराते। अमृता के समक्ष यूं अपनी असहजता के चलते चंदन ने निर्णय लिया कि वह अब मृदुल के घर नियमित रूप से नहीं जाया करेगा। बच्चों से मिलने के लिए वह उन्हें अपने घर बुला लिया करेगा। इस निर्णय के पश्चात स्थिति थोड़ी आसान हो गई । आखिरकार मुश्किल से ही सही, चंदन ने अमृता के बिना जीना सीख लिया था।

यूं चंदन के लौटकर आने के बाद दस वर्ष बीत चले थे। चंदन, अमृता और मृदुल वृद्धावस्था की ओर कदम बढ़ा रहे थे। तीनों बच्चों का विवाह हो गया और सभी अपनी अपनी गृहस्थी में रमे हुए थे। कि तभी अमृता के ऊपर एक बार फिर से वज्रपात हुआ था। एक सडक़ दुर्घटना में मृदुल गंभीर रूप से घायल हो गया और अंतिम समय में आखिरी सांस लेते हुए मृदुल ने चंदन और अमृता के हाथ एक दूसरे के हाथ में देते हुए अमृता से वचन लिया कि उसकी मृत्यु के बाद वह चंदन से दोबारा विवाह कर लेगी।

मृदुल की मृत्यु हुए पूरा डेढ़ वर्ष बीत चला था। तीनों बच्चे मां को फिर से चंदन से विवाह के लिए कुछ समय से मना रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य की ठोकरें खाई हुई अमृता विवाह के लिए अपनी रजामंदी नहीं दे रही । तीनों बच्चे मृदुल अमृता से दूर अलग-अलग शहरों में काफी समय से रह रहे थे। मृदुल की मृत्यु के बाद डेढ़ वर्ष तो तीनों बच्चे बारी-बारी से मां की देखभाल के लिए जल्दी जल्दी उसके पास चले आते रहे थे। चंदन ने भी देह और मन से क्लांत अमृता का अच्छी तरह से ध्यान रखा था।

‘मां और अकेली रहेगी तो और दु:ख पाएगी,’ यह सोचकर बच्चों ने चंदन की सम्मति से उनके विवाह का एक शुभ मुहूर्त निकलवाया। 

आज चंदन और अमृता का विवाह है। चंदन बहुत खुश था। आज उसकी बरसों की साध पूरी होने जा रही । लेकिन अमृता पूरे मन से खुश नहीं । एक बार फिर से किसी अपने को हमेशा के लिए खोने का दर्द उसे शिद्दत से साल रहा था। मृदुल को हमेशा के लिए खो देने की वास्तविकता उसकी खुशियों में कांटे जैसी चुभ रही । वह सोच रही थी, उसकी जिंदगी उतार-चढ़ावों भरी दु:खद कहानी बनकर रह गई । क्यूं नियति उसे कोई भी खुशी भरपूर नहीं देती। उसकी हर खुशी के साथ एक कसैली कसक की सौगात उसे हमेशा क्यों मिलती है? अब चंदन को पाने की खुशी मिल रही तो मृदुल को हमेशा के लिए खोने की टीस उसके दिल में शिद्दत से उठ रही थी।

कि तभी उसने देखा कि नैना ने मेहंदी वाली से कहा था, ‘‘आंटी, पापा का नाम मम्मी की हथेली पर ऐसे छिपाकर लिखना कि पापा उसे आसानी से नहीं ढूंढ पाएं।’’ और नेहुल, मनु और नैना, तीनों चंदन और अमृता को देखकर खिलखिला कर हंस दिए।

बड़े जतन से सींची गई अपनी फुलवारी में अपने तीनों फूलों को यूं खुश, मगन, चहकता हुआ देखकर अमृता भी भीगी आंखों से मंद मंद मुस्कुरा उठी । वह सोच रही , पल-पल बदलते सुख-दुख की धूप-छांव, यही तो जिंदगी है।