किनारा

"अरे बेटा, इतना अच्छा घर बार मिला है, यह मौका हाथ से मत जाने दे। देर अबेर मन्नी की शादी तो करनी ही है ना, गांव का घर बेच कर पैसों का इंतजाम भी हो जाएगा। लड़के की बैंक में पक्की नौकरी है। फिर इनकी कोई खास मांग भी नहीं है। मुझे तो ये लोग बहुत भले लगे। नहीं तो शादी के बाज़ार में पक्की नौकरी वाले लड़के का बिना भारी दहेज के मिलना आसान नहीं। ये तो अपनी मन्नी शक्ल सूरत की अच्छी है। सो पहली बार में लड़के वालों को पसंद आ गई। एक बार अगर इस रिश्ते को ठुकरा दिया तो न जाने फिर कैसे लोगों से पाला पड़े। शादी ब्याह के मामलों में ज्यादा नखरे करना ठीक नहीं होता बेटा। जितनी ज्यादा छान बीन करेगा, उतनी किरकिरी निकलेगी। फिर क्यों दुविधा में पड़ा हुआ है? चल, जल्दी से खबर कर दे लड़के वालों को,” मन्नी की दादी ने मन्नी के पिता हरिचरण से कहा।

"अरे मां मैं बेहद पशोपेश में हूं क्या करूं। उधर मन्नी ने मेरी जान खाई हुई है। उसे पढ़ाई करनी है इंजीनियरिंग की। इधर इस लाग लपेट में इतना अच्छा लड़का हाथ से निकला जा रहा है। लड़का बैंक में क्लर्क है। खाता पीता अच्छी हैसियत का परिवार है।"

"और बेटा, सबसे अच्छी बात, इस लड़के पर कोई जिम्मेदारी भी नहीं। इकलौता बेटा है। बैंक की बढ़िया नौकरी है। और क्या चाहिए तुझे? अब ज्यादा सोच विचार मत कर। हमारी मन्नी राज करेगी राज।"

"अरे मां, चाहता तो मैं भी हूं, उसकी शादी कर दूं तो उसकी जिम्मेदारी पूरी हो। राजी खुशी अपने घर जाए, लेकिन कल से जब से उसकी इंजीनियरिंग के दाखिले का नतीजा निकला है, वह मेरे पीछे लगी हुई है कि उसे आगे पढ़ाई करनी है। इंजीनियर बनना है। कुछ समझ नहीं आ रहा, क्या करूं?"

"बेटा समझाकर, लड़की जात तो जितनी जल्दी अपने घर-बार की हो जाए उतना अच्छा। देर मत कर बेटा, लड़के वालों को इस रिश्ते के लिए हां कर दे कि अच्छा सा मुहूर्त देख कर रोका कर जायें। मन्नी का क्या है? थोड़ा रोएगी धोएगी, फिर चुप हो जाएगी"

मां की बातें सुनकर हरिचरण ने मन्नी को आवाज दी, "मन्नी बेटा, जरा सुनना तो इधर।"

"जी बाबूजी, आई। बाबूजी मुझे अभी ब्याह नहीं करना, मुझे इंजीनियरिंग करनी है। अभी अभी लिस्ट आई है, मुझे यहां रीजनल कॉलेज में दाखिला मिल गया है। आपकी बेटी के बहुत अच्छे नंबर आए हैं। बाबूजी, मेरे अच्छे बाबूजी, मुझे दाखिला दिलवा दो। आपका ज्यादा खर्च भी नहीं होगा। रीजनल कॉलेज की फीस भी कोई ज्यादा नहीं। फिर उसकी फीस का जुगाड़ तो मैं ट्यूशन करके ही कर लूँगी। आप पर अपनी फीस का भी कोई बोझ नहीं डालूंगी। इंजीनियर बन जाऊंगी तो हमारी सारी मुश्किलें आसान हो जाएंगी। इस कोरोना के कहर के चलते आपके ऑटो में भी पहले की तरह ज्यादा सवारियां नहीं आ रहीं। आप पर पहले ही इतना क़र्ज़ा चढ़ गया है। बाप दादों की विरासत शादी में लुटाने को क्यों उतारू हो रहे हैं आप? गांव का घर बुरे वक़्त में आपका सहारा बनेगा। बिना पढ़ाई पूरी करवाए मेरी शादी कर देंगे तो मैं भी मां की तरह एक एक पैसे के लिए दूसरों की मोहताज़ हो जाऊंगी। पूरी ज़िंदगी आप लोगों की तरह पैसों की किल्लत में बीतेगी। अगर मैंने रीजनल कॉलेज से इंजीनीयरिंग कर ली तो पढ़ाई पूरी होने के बाद भिड़ते ही बहुत बढ़िया नौकरी लगेगी। इंजीनीयर बनने का मेरा सपना पूरा होने दीजिये बाबूजी। प्लीज़ बाबूजी, इंजीनीयरिंग के लिए हां कर दीजिये ना।"

"अरे बेटा, तू पढ़ने की जिद क्यों कर रही है? शादी तो तेरी देर सबेर करनी ही है ना। ये जो अभी तेरे लिए रिश्ता आया है, हर लिहाज से बढ़िया है। घर बार भी हमसे बहुत अच्छा है। मैं अदना सा ऑटो ड्राइवर, अपने घर तो तुझे कोई सुख नहीं दे पाया। हमेशा तंगी में ही रखा है तुझे मैंने। अब जब इतने बढ़िया घर से रिश्ता आया है तो इस रिश्ते के लिए ना मत कर बेटा। तेरा बाप बहुत गरीब है, तेरे लिए और कुछ तो कर नहीं पाया, इज्ज़त से तुझे विदा कर पाऊं, मुद्दत से यही सपना देखता आया हूँ मैं। समय पर तेरे हाथ पीले हो जाएँ तो मैं गंगा नहाऊं," हरिचरण ने नम आँखों से बेटी से चिरौरी करते हुए कहा।

"बाबूजी, मुझे इतनी जल्दी शादी नहीं करनी। पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ा होना है। आपका सहारा बनना है।"

"ठीक है, ठीक है, शाम को तसल्ली से बैठकर बातें करते हैं। किसी पढे लिखे से सलाह भी लेता हूं, क्या करना चाहिए, तभी फैसला करूंगा। मुझ अनपढ़ की तो अक्ल काम नहीं करती। खैर, अभी तो निकलता हूं ऑटो लेकर, "कहते हुए हरिचरण अपना ऑटो लेकर घर से निकला ही था कि उसे बस अड्डे के लिए दो सवारियां मिल गईं। मन्नी की उम्र की लड़की और शायद उसकी मां उसके ऑटो में बैठे थे।

हरि चरण के जेहन में जद्दोजहद जारी थी। मन्नी की शादी या पढ़ाई, वह स्पष्टता से कुछ सोच नहीं पा रहा था कि वह क्या करे? तभी उसने सुना, सवारी लड़की की मां अपनी बेटी से कह रही थी, "बिटिया फीस का चैक संभाल कर रख लिया है ना? तेरी तरफ से चिंता रहेगी। पहली बार अकेली दिल्ली जा रही है, दिन ढलने के बाद अकेले मत निकलियो बेटा।"

"हां मां, चिंता मत करो हम दो सहेलियां जा रहे हैं ना। हर जगह दोनों साथ ही जाएंगे। फ़िजूल का टेंशन मत लो।"

"बेटा, पहली बार अकेली जा रही है। जी घबरा रहा है मेरा।"

'अरे मां, आप भी ना," लड़की ने कहा।

इस बातचीत को सुन हरिचरण उस लड़की की मां से पूछ बैठा, "बहिनजी, क्या आपकी बेटी पढ़ाई के लिए दिल्ली जा रही है? मेरी बेटी भी आपकी बिटिया की उम्र की है। उसे यहीं शहर के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया है, लेकिन मैं कोई फैसला नहीं ले पा रहा, उसकी शादी करूं या उसे पढ़ाई करवाऊं?"

"ऑबवियसली पढ़ाई करवाओ। इंजीनियर बन कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी। शादी करके तो सारी जिंदगी हर बात के लिए दूसरों का मुंह देखेगी। मुझे देखो, शहर के किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला नहीं मिला। इसलिए अकेली दिल्ली पढ़ाई करने जा रही हूं”, लड़की ने हरिचरण से कहा।

"बिटिया, हम गरीब लोग हैं। हमारे समाज में लड़कियों की शादी जल्दी करवाने का चलन है? इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाने के लिए उसकी शादी के लिए चार साल रुकना पड़ेगा। जवान जहान लड़की से इतनी ऊंची पढ़ाई करवाने पर बिरादरी में दस बातें बनेंगी। फिर आजकल जैसा माहौल है, उसे देख कर जी घबराता है। कल को कोई ऊंच नीच हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे।”

"अरे अंकल, समाज और बिरादरी का क्या सोचना? कल को अगर आपकी बेटी पढ़ लिख गई तो यही समाज आपकी बड़ाई करते नहीं थकेगा। फिर क्या लड़कियों की शादी जल्दी करवाने से माहौल बदल जाएगा? लड़कियों को आगे बढ्ने का मौका दीजिये। उनको सपोर्ट दीजिये। आज की चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत दीजिये। रीजनल कॉलेज से इंजीनियरिंग करेगी तो बहुत शानदार नौकरी मिलेगी। बिना सोचे समझे उसका दाखिला करवा दो कॉलेज में। आपको तो अपनी बेटी पर फख्र होना चाहिए, अपनी मेहनत के दम पर उसे इतने नामचीन कॉलेज में ऐडमीशन मिला है।"

उसकी बातें सुन मानो उसकी दुविधा को किनारा मिल गया। हरि चरण की आंखों के सामने अनायास मन्नी का उसकी मिन्नतें करता रुआंसा चेहरा आ गया और वह बुदबुदाया, "अब और नहीं रुलाऊंगा री लाड़ो, तू भी पढ़ेगी। पढ़ लिखकर मेरा नाम रौशन करेगी। अपने सपने पूरे करेगी," और मुदित मन हरिचरण ने मुंह ही मुंह में मुस्कुराते हुए अपने ऑटो की गति बढ़ा दी।