एहसास-ए-जुनून

समर्पण

यह कहानी सर्वप्रथम मैं अपनी परम स्नेही माँ श्रीमती सरोज बंसल को समर्पित करती हूँ, जिन्होंने अपनी अथक त्याग तपस्या से मुझे इस लायक बनाया कि मैं अपने मन के भावों को कथा कहानी का रूप देकर अपने पाठक वर्ग की कुछ सेवा कर सकूं। 

मैं कृतज्ञ हूं अपने प्रिय पति श्री प्रदीप गुप्ता की जिनके बेशर्त सहयोग से मैं घर गृहस्थी की सौ उलझनों से आंखें मूंद निश्चिंत हो अनवरत साहित्य सृजन में व्यस्त रहती हूँ।  मैं कृतज्ञ हूं अपने आदरणीय पिता स्वर्गीय श्री हरस्वरूप बंसल की जिनके सतत प्रशंसात्मक सहयोग एवं प्रोत्साहन से मैं लेखन के अपने वर्तमान मुकाम तक पहुँच पाई।

Title
1: झरोखा
2: चुनौतियां
3: हलचल
4: काँटों भरी डगर
5: आगाज़
6: गहराइयां
7: क्या हमराह बनोगी?
8: इकरार और वायदे
9: ज़िंदगी अब तुम्हारे हवाले