अंजुरी भर नेह

Publisher: बोधरस प्रकाशन Price: ₹290 Pages: 180 ISBN: 978-9394704848
अंजुरी भर नेह

मेरा उपन्यास ’अंजुरी भर नेह’ के कथानक का ताना-बाना एक निर्धन किंतु कुशाग्र बुद्धि छात्र देवव्रत की जीवन गाथा के रूप में बुना गया है। देवव्रत एक ऐसा स्वाभिमानी विद्यार्थी है, जो कर्मठ होने के साथ-साथ अपनी उस लक्ष्मण रेखा से भी परिचित है जिसे उसे अपने प्रति अनुराग भाव रखने वाली उच्च जाति की रसूखदार परिवार की इकलौती संतान  चंदा के साथ बनाए रखनी है। चंदा उसके प्रति मन में पलते अपने अनुराग भाव के चलते  उसकी उच्च शिक्षा के खर्च को झेलने में जी जान से मदद करती है। जज बनने की उसकी महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु वह उसे भरसक  प्रेरित करती है। देवव्रत मन ही मन उसे चाहता है लेकिन अपनी अभावग्रस्त, विपन्न पृष्ठभूमि के चलते स्वयं को उसके योग्य नहीं मानता और मौन रहता है। कभी भी खुल कर उसके प्रति अपनी चाहत का इजहार नहीं कर पाता।

अपने अथक परिश्रम से जब उसकी नियुक्ति सिविल जज के रूप में होती है, तब वह चंदा के समक्ष अपने प्रेम को अभिव्यक्त करता है किंतु कुछ प्रारब्ध का खेल, कुछ जाति भेद, सामाजिक स्तर में अंतर, वे दोनों विवाह बंधन में नहीं बंध पाए।

चंदा को वरदान के रूप में एक सुयोग्य उच्च पुलिस अधिकारी पति के रूप में  मिलता है। दो बेटों की मां बन कर वह सुखी और संतुष्ट जीवन व्यतीत कर रही होती है।

एक मुद्दत बाद जब देवव्रत चंदा वरदान की जिंदगी में आता है, वरदान बिना किसी पूर्वाग्रह के पत्नी के पूर्व परिचित एवं प्रगाढ़ मित्र देवव्रत की मैत्री स्वीकार कर लेता है।

चंदा और देवव्रत का अलौकिक प्रेम इस उपन्यास का दृढ़ आधार स्तंभ है, जो उपन्यास की संपूर्ण कथा यात्रा में पाठक के मानस पटल पर छाया रहकर मन को असीम सुकून प्रदान करता है। उनका प्रेम बंधन ऐसा बंधन है जो संबंध की पूर्णता तक नहीं पहुंच पाता। उनका प्रेम इतना उदात्त  है कि वह किसी रिश्ते के बंधन अथवा नाम का मोहताज  नहीं। वह अपने आप में परिपूर्ण है। कृति में वर्णित प्रेम के विविध रूपों में चंदा और देवव्रत का प्रेम आत्मा को स्पर्श कर लेता है। साथ ही  पति वरदान का दोनों पर अदम्य विश्वास एक वरदान ही है।

उपन्यास का एक बड़ा हिस्सा चंदा वरदान के दोनों पुत्रों के बचपन, शिक्षा दीक्षा, प्रेम प्रसंग उनमें आने वाली अड़चन समस्याओं का सुलझाव क्रमशः दोनों का विवाह आदि के वर्णन को समर्पित है। उपन्यास के प्रत्येक पात्र को जीवन में उसके हिस्से का स्नेह प्राप्त हो जाता है। अंत में  देवव्रत के लिए भी एक आश्रम एवं अनाथालय की संचालिका, केया पाठक के साथ एक सुखद साथ की छांव के संकेत मिलते  हैं।

रेणु गुप्ता द्वारा रचित उपन्यास ‘अंजुरी भर नेह’ पर कुछ विद्वज्जन की प्रतिक्रियाएँ:

साहित्य के क्षेत्र में रेणु गुप्ता का एक विशेष स्थान है l इनकी कलम ने कई विधाओं में अद्भुत सृजन किया है l इनके लघुकथा लेखन से प्रभावित हो मैंने इनके लघुकथा संकलन ‘आधा है चन्द्रमा’ की भूमिका लिखी थी l हाल ही में आपका उपन्यास ‘अंजुरी भर नेह’ पढ़ने का सुअवसर मुझे मिला और मैं एक बार पुनः इनकी लेखनी का कायल हो गया l

उक्त उपन्यास को बोधरस प्रकाशन, लखनऊ ने बहुत ही आकर्षक कवर में प्रकाशित किया है, इसका मूल्य रु. 290 रख कर इसे ‘अमेज़न’ पर तथा ‘ई-बुक’ के रूप में भी उपलब्ध कराया है l पुस्तक की भूमिका वरिष्ट साहित्यकार सुश्री विनीता राहुरीकर ने लिखी है तथा इसे दिल्ली के प्रगति मैदान में विश्व पुस्तक मेले के हॉल संख्या 2 में स्टाल संख्या एन-18 में देखा जा सकता है l

पुस्तक के प्रभाव ने मेरी लेखनी से स्वयं की समीक्षा लिखवा ही ली...l

सदानंद कवीश्वर

रेणु गुप्ता एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसे जानने के लिए उनसे मिलना आवश्यक नहीं है l जिस तरह चन्दन वन से आती सुगंध वहाँ उपस्थित चन्दन के वृक्षों का आभास दिला देती है अथवा किसी वाटिका से आती सुगंध हमें न केवल उसमें लगे फूलों के विषय में बताती है बल्कि यह भी आभास करा देती है कि उसमे कौन-कौन से फूल लगे हैं l रेणु जी से मैं अभी तक आमने-सामने नहीं मिला हूँ किन्तु उनके साहित्य सृजन की सुगंध उनका परिचय देने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम है l  

एक ऑनलाइन लघुकथा गोष्ठी के सञ्चालन के समय मेरा उनसे आभासी रूप से मिलना हुआ था l फिर उनकी लघुकथाओं से प्रभावित हो उनके प्रथम लघुकथा संकलन की भूमिका लिखने का अवसर और अब उनके उपन्यास ‘अंजुरी भर नेह’ की समीक्षा का अवसर मुझे मिला है l

सदानंद कवीश्वर
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