सपना

वल्लरी बेहद खुश थी। आज उसके पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। एन्जेलो को जीवन साथी के रूप में पाने की उसकी तपस्या सफल हुई। उसे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा था दादू और दादी उसे एन्जेलो से विवाह करने की अनुमति दे देंगे। यह सर्वथा उसकी कल्पना से परे था।

वल्लरी कैनवास पर किसी नारी आकृति को मूर्त रुप देने का प्रयास कर रही थी। देखते देखते अनायास वह चेहरा एक पुरुष के चेहरे में बदल गया, और उसके सधे हाथों ने उस चेहरे में एन्जेलो के तराशे से हुए आकर्षक नाक नक्श उकेर दिए। वह बोल उठी, “उफ् एन्जेलो तुम कितने अच्छे हो। तुमने दादू और दादी को खुश कर दिया। उन्हें अपनी शादी के लिए मना लिया। अद्भुद, यह चमत्कार तुम ही कर सकते थे।”

कैनवास पर प्रशिक्षित हाथों से एन्जेलो के पोर्ट्रेट में अपनी तूलिका से प्राण फूंकते फूंकते वह अनायास अतीत के खट्टे मीठे पलों को एक बार फिर जीने लगी।

पेंटिंग मैं अपनी ईश्वरप्रदत्त प्रतिभा के बल पर वह एक उच्च कोटि की पेंटर बन गई थी। भारत की एक शीर्षस्थ आर्ट यूनिवर्सिटी से उसने पेंटिंग में उच्चतम डिग्री ली। जब भी अपनी पेंटिंग की प्रदर्शनी लगाती, उसकी सभी पेंटिंग हाथों-हाथ उसके लगाए ऊंचे दामों पर बिक जातीं । उसका घर आर्ट प्रतियोगिताओं में जीते गए पुरस्कारों से अटा पड़ा था। उन्हीं दिनों उसकी एक सहेली इटली के एक अति प्रतिष्ठित संस्थान से आर्ट में उच्च अध्ययन करने जा रही थी। उसे देख वल्लरी भी यह कोर्स करने के लिए लालायित हो उठी और उसने भी आनन-फानन में उसके लिए आवेदन कर दिया। एक आध माह में उसे भी उस संस्थान में प्रवेश मिल गया। आर्ट में उच्च अध्ययन के लिए तीन वर्षों के लिए इटली जाना उसके लिए किसी सपने से कम न था। पूरा घर उसके इटली जाने के विरुद्ध था, लेकिन वल्लरी जिस बात को ठान लेती, अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से उस बात को पूरा करके ही दम लेती। आखिरकार उसने कुछ मनुहार कुछ गुस्से से घर वालों को इटली जाने के लिए मना लिया और इटली के लिए रवाना हो गई।

विदेशी माटी , विदेशी परिवेश में पहुंचकर कुछ दिन तो वल्लरी बेहद उदास, अनमयस्क रही थी। कदम-कदम पर माता- पिता, छोटी बहन उसे बेहद शिद्दत से याद आते लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ वह उस अचीन्हे अनजाने परिवेश में रम ने लगी। फिर पेंटिंग में उसकी जान बसती थी। इटली के उस आर्ट सेंटर में उसकी कला को एक नया आयाम मिला। उसकी पेंटिंग कौशल में आशातीत निखार आया।

कि तभी उसका परिचय अपनी क्लास के एक इटालियन लड़के एन्जेलो से हुआ। एन्जेलो के साथ पहले परिचय में वह बहुत सहज महसूस करने लगी थी। एन्जेलो का व्यक्तित्व था भी अत्यंत सरल और सह्रदय। ग्रीक देवी देवताओं जैसे गढ़े हुए मोहक नाक नक्श और ऊंचे कद काठी के साथ वह जहां से भी गुजरता लोगों की दृष्टि उस पर ठहरे बिना नहीं रहती। मुस्कुराता तो लोगों पर उसकी मीठी मुस्कान बिजलियां गिरा देती। वल्लरी जब भी एन्जेलो से मिलती उसके प्रति एक अबूझ खिंचाव महसूस करती।

एन्जेलो एक बेहद प्रतिभाशाली कलाकार था। अतः समय के साथ समान रुचियों के चलते एन्जेलो और वल्लरी की मित्रता प्रगाढ़ होती जा रही थी। वल्लरी ने बेहतर पेंटिंग करने के अनेक गुर एन्जेलो से सीखे थे, और अपने पेंटिंग के कौशल उससे साझा किए थे।

दोनों क्लास में सदैव साथ बैठते और अपने संस्थान के परिसर में साथ-साथ घूमते। लेकिन इधर कुछ दिनों से वल्लरी महसूस कर रही थी, एन्जेलो उसे देखकर भी नजरअंदाज करने लगा है। हमेशा की तरह जब भी वह एन्जेलो के साथ एक बेंच पर क्लास में बैठती, तो एन्जेलो जानबूझकर अपने इटालियन मित्रों के साथ बैठने उससे दूर चला जाता। एन्जेलो के इस बेरुखी भरे व्यवहार से वल्लरी अत्यंत आहत महसूस कर रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह एन्जेलो जो इतने महीनों तक उसका एक विश्वसनीय दोस्त रहा था, उसने उससे आंखें कैसे फेर लीं, और उसने सोचा था, एन्जेलो से इस मुद्दे पर बात करनी ही होगी कि वह अचानक उसकी दोस्ती को क्यों ठुकराने लगा था।

कि एक दिन वल्लरी को एन्जेलो से बात करने का मौका मिल ही गया। उस दिन रिमझिम बरसात हो रही थी और अनेक छात्र अनुपस्थित थे। एन्जेलो अकेला कक्षा में कोई आकृति बोर्ड पर उकेर रहा था। वल्लरी बिना आहट किए उसके पीछे जाकर खड़ी हो गई। वह यह देख कर आश्चर्य विमूढ़ हो गई थी कि वह नारी आकृति धीरे-धीरे उसकी शक्ल लेने लगी थी। उसका चेहरा उसकी शक्ल से हुबहू मिल रहा था। यह देखकर वह उससे बोल उठी। "एन्जेलो क्या बात है, तुम आजकल मुझसे उखड़े उखड़े कैसे रहते हो? मुझसे कोई भूल हो गई हो तो बताओ।"

वल्लरी को यूं अप्रत्याशित रूप से सामने पाकर और उसे चोरी चोरी उसका पोर्ट्रेट बनाते देख लेने पर एन्जेलो बहुत झेंप गया। उसके गोरे चेहरे पर मानो रक्त उतर आया और उसके रक्तिम लाल चेहरे को देखकर जोर जोर से हंसते हुए वल्लरी ने उससे कहा, "एक बात तो तय है, तुम मुझे भी उतना ही अपना दोस्त मानते हो जितना कि मैं तुम्हें मानती हूं। तभी तो चोरी चोरी मेरा पोर्ट्रेट बना रहे थे। फिर आजकल मुझसे इतना दूर दूर क्यों रहते हो?”

जवाब में एक शर्मीली सी बेहद प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ एन्जेलो ने उसे जवाब दिया, "चलो कैफे में बैठते हैं।"

कैफे में उस दिन एन्जेलो ने उसे बताया, कि उसकी मां और दादी उसकी शादी उनकी चुनी हुई लड़की से करने की जिद कर रही हैं जबकि वह उस लड़की को विवाह के नजरिए से बिल्कुल पसंद नहीं करता।

यह सुनकर वल्लरी को एक अबूझ राहत का अनुभव हुआ, लेकिन उस वक्त वह सोच पाने में असफल रही थी कि ऐसा क्यों हुआ?

अगले दिन संस्थान की ओर से उनकी कक्षा के कुछ विद्यार्थी एक दूसरे शहर में आर्ट एग्जीबिशन लगाने के लिए हवाई यात्रा कर रहे थे। एन्जेलो और वल्लरी साथ-साथ बैठे थे कि वल्लरी को नींद आ गई थी। उसका चेहरा एन्जेलो के चौड़े कंधों पर टिक गया। कि तभी वल्लरी नींद में मद्धम स्वरों में बड़बड़ाई थी, "ओह एन्जेलो तुम मेरे पूरे वजूद में समा गए हो। मैं तुम्हें बेहद चाहती हूं। आई लव यू सो मच एन्जेलो।"

"यही हाल मेरा भी है वल्लरी, सोते जागते उठते बैठते मैं सिर्फ तुम्हारे बारे में सोचा करता हूं। खुली आंखों से सिर्फ तुम्हारे सपने देखा करता हूं। आई लव यू टू माय डार्लिंग।" एन्जेलो के यह कहने से पहले ही वल्लरी की आंखें खुल गईं और उसने भावनाओं में बहते हुए एन्जेलो का हाथ कसकर पकड़ उसकी हथेली पर एक स्नेह चिन्ह अंकित कर दिया। भावनाओं के उद्दाम ज्वार ने दोनों को आकंठ डुबो दिया था और एन्जेलो ने वल्लरी के कुंवारे होठों पर अपने प्यार की छाप छोड़ दी।

ह्रदय की कोमलतम भावनाओं के इस मधुर आदान-प्रदान के उपरांत एन्जेलो और वल्लरी ने फिर मुड़ कर नहीं देखा। अभी तक की दोनों की प्रगाढ मैत्री को एक नया आयाम मिला। दो युवा ह्रदय दिल में छुपी हसरतों को दबा न पाए और दोनों ने लिव इन करने का निश्चय किया। वल्लरी को पैसों की कमी न थी। वह एक रईस खानदान की लड़की थी जबकि एन्जेलो एक साधारण नौकरी पेशा परिवार का लड़का था। इसलिए एन्जेलो ने अपना किराए का मकान खाली कर दिया और वह वल्लरी के साथ उसके फ्लैट में आकर रहने लगा।

यूं एक ही छत के नीचे साथ साथ रह एन्जेलो और वल्लरी बेहद खुश थे। शुरू शुरू में बिना विवाह के एन्जेलो के साथ संबंध में बंधने पर वल्लरी अपराध भावना से ग्रस्त हुई थी। उसके भारतीय संस्कारों से सिंचित मन ने उसे किसी लड़के को विवाह के बिना अपने आप को सौंप देने के लिए धिक्कारा था। एकाध दिन वह इसको लेकर थोड़ी शर्मिंदा और खिन्न अवश्य रही, लेकिन फिर उसने यह सोच कर अपने मन को बहला लिया कि आज के नए दौर में विवाह के लिए सही पात्रता परखने के लिए लिव इन करना ही एकमात्र विकल्प है। इस सोच ने उसे बहुत हद तक यह बेनाम रिश्ता जोड़ने से उपजी ग्लानि भावना को धो पौंछ दिया।

समय के साथ एन्जेलो एक बहुत सुलझा हुआ, समझदार, सहृदय और सीधा सादा साथी साबित हुआ। वह वल्लरी को पलकों पर सहेज कर रखता, उसकी हर इच्छा, आकांक्षा, जरूरत को तत्क्षण पूरी करता। सर्वोपरि उसकी अस्मिता की कद्र करता। उसके स्वतंत्र अस्तित्व को पूरा मान देता। घर के कामों में उसका हाथ बंटाता। उसे उसकी पसंद की चीजें उपहार में देता। अपने खुशमिजाज विनोदी और बातूनी स्वभाव से उसे हरदम खुश रखता। वल्लरी उसके साथ बेहद खुश रहती।

वह अक्सर सोचती, एन्जेलो को पति के रुप में पाना उसका सौभाग्य होगा। एक सर्वथा भिन्न विदेशी पृष्ठभूमि का होने के बावजूद इटालियन संस्कृति और भारतीय संस्कृति में साम्यता के कारण उसे एन्जेलो के साथ सामंजस्य बैठाने में कोई खास समस्या नहीं आई थी।

लेकिन उससे विवाह करना इतना आसान न था। वह एक कट्टर ब्राह्मण परिवार से थी, जहां आज तक किसी ने अंतरजातीय विवाह तक नहीं किया था। और वह था विदेशी साथ ही विधर्मी। एक दूसरे देश के अन्य धर्म मानने वाले लड़के से तो उसके माता-पिता उसका विवाह हरगिज नहीं करेंगे, उसने सोचा था। कभी कभी वह दुविधा में पड़ जाती, क्या उसने एन्जेलो के साथ लिव-इन कर कोई गलती तो नहीं की?

वल्लरी की विवाह योग्य उम्र हो गई थी। अब उसके माता-पिता उस पर विवाह कर लेने का दबाव बना रहे थे। वल्लरी अपने माता पिता, बहन, दादा और दादी से रोजाना वीडियो चैटिंग करती। कि एक दिन उसके पिता ने उससे कहा था कि वह इटली में एक भारतीय लड़के से मिल ले जो सिर्फ विवाह के लिहाज से ही उससे मिलने उसके शहर अगले सप्ताह पहुंचने वाला था। यह सुनकर वल्लरी घबरा गई और उसने माता पिता और दादू दादी से कहा। "मैंने अपने लिए लड़का चुन लिया है। बहुत ही शरीफ और भला लड़का है। लेकिन वह इटालियन है। मैं विवाह करूंगी तो एन्जेलो से वरना ताउम्र विवाह नहीं करूंगी।"

यह सुनकर पूरे परिवार में तहलका मच गया। बेटी को समझाने के लिहाज से माता पिता ने अगले सप्ताह ही उससे मिलने के लिए इटली पहुंचने का कार्यक्रम बना लिया।

इटली में बेटी को एक विदेशी लड़के के साथ एक छत के नीचे लिव इन करते देख माता पिता को गहरा सदमा पहुंचा। उन्होंने वल्लरी को लाख समझाया कि वह उनके बताए रिश्ते के लिए हां कर दे। लेकिन इतने दिनों तक एन्जेलो के आदर्श स्वभाव का परिचय पाकर वल्लरी समझ गई थी कि एन्जेलो आजीवन उसे सुखी रखेगा, उसे कभी कोई दुख नहीं देगा। इसलिए उसने साफ साफ लफ्जों में माता पिता से कह दिया कि यदि वे इस विवाह के लिए राजी हों तो ही वह अपने घर लौटगी। वह उनके और दादू दादी के आशीर्वाद के साथ जीवन के इस अहम बंधन में बंधना चाहती है। लेकिन यदि वे अपनी सहमति नहीं देते हैं तो वह कभी अपने घर नहीं लौटेगी।

दुखी माता पिता के सम्मुख बेटी की इस शर्त को मानने के अलावा और कोई चारा न था। सो उदास मन उन्होंने उसे एन्जेलो के साथ विवाह के लिए हामी भर दी।

संस्थान में कोर्स खत्म होते ही वल्लरी एन्जेलो को लेकर अपने घर पहुंच गई। एन्जेलो को विवाह से पहले उसे अच्छी तरह जांचने-परखने के लिए माता पिता ने उसे अपने घर में ही ठहराया। आशा के अनुरूप कुछ ही दिनों में एन्जेलो धीरे-धीरे परिवार के सभी सदस्यों के साथ घुलने-मिलने लगा। वल्लरी ने अपने शहर में अपनी और एन्जेलो की बनाई हुई पेंटिंग्स की एक प्रदर्शनी आयोजित की। उस शाम दादू दादी को छोड़कर घर के सभी सदस्य प्रदर्शनी चले गए थे। वृद्धावस्था के कारण दादू दादी अक्सर घर में रहते थे। बाहर बहुत कम निकलते थे। लेकिन एन्जेलो एक नौकर की मदद से दादू दादी दोनों को व्हीलचेयर पर बैठा कर उन्हे प्रदर्शनी दिखाने ले गया।

उस दिन एक लंबे अंतराल के बाद घर से बाहर निकलकर दादू दादी बेहद प्रसन्न हुए, और उन्होंने एन्जेलो को ढेर सारा आशीर्वाद दिया।

उस दिन के बाद से एन्जेलो अक्सर दादू दादी को शाम को पार्क की सैर कराने ले जाया करता था। इस प्रदर्शनी में उन दोनों की लगभग सभी पेंटिंग्स हाथों हाथ उनके लगाए दामों पर बिक गईं। दोनों ने पेंटिंग्स की बिक्री से हुई मोटी आय को आधा आधा आधा बांट लिया। इस प्रदर्शनी के बाद वल्लरी के माता पिता उसकी कला प्रतिभा की ओर से आश्वस्त हो गए। उन्हें भरोसा हो गया कि अपनी कला के जरिए एन्जेलो अच्छी आमदनी कर सकता है और उसके साथ उनकी बेटी का भविष्य सुरक्षित रहेगा।

एक दिन दादी की तबीयत नर्म थी और वह कुछ भी खाना नहीं चाह रही थी। एन्जेलो ने उस दिन स्वयं अपने हाथों से उनके लिए टमाटर का सूप बनाया था और उन्हें अपने हाथों से पिलाया। उस दिन के बाद से वह नियमित रूप से दादू दादी के लिए लगभग रोज शाम को सूप बनाने लगा था।

इटली की संस्कृति में बच्चों द्वारा बड़े बुजुर्गों की सेवा को बहुत अहमियत दी गई है। एन्जेलो दादू दादी की सेवा अत्यंत ही सहज भाव से करता था। वह इटली मैं भी अपने दादा दादी की सेवा बहुत मनोयोग से करता था। उसका अपने प्रति यह समर्पित सेवाभाव व स्नेहिल व्यवहार देख वल्लरी के माता पिता, दादू दादी का विरोध पिघलने लगा। वे एन्जेलो को बड़ी शिद्दत से अपने बेटे जैसा चाहने लगे।

एक दिन वल्लरी के दादाजी के घुटनों में बहुत दर्द हो रहा था। उस दिन एन्जेलो ने बहुत देर तक उनकी मालिश की जिससे उनको बहुत आराम मिला।

तभी दिवाली का त्यौहार आया। एन्जेलो ने घर के सदस्यों की तरह दिवाली की सफाई में वल्लरी और उसकी बहन की मदद की थी। उसकी मां से उसने कई पकवानों को बनाना सीखा तथा सभी पकवान शौक से खाए। फिर रात को लक्ष्मी पूजन में भी वह बहुत उत्साह एवं धैर्य से शामिल हुआ। पूजा के उपरांत वल्लरी के कहने पर उसने बड़ी ही श्रद्धा से सभी बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया।

इस प्रकार एन्जेलो ने अपने भले मिलनसार, उष्मा भरे स्वभाव से घर के सभी सदस्यों के दिलों में अपनी जगह बना ली। दादू दादी की अनुभवी आंखें भी एन्जेलो के बेटी के प्रति जरूरत से अधिक केयरिंग स्वभाव और उसकी चाहत को ताड़ गई थी। जैसे-जैसे समय गुजरता गया था, उन्हें एन्जेलो की अच्छाइयों पर विश्वास होने लगा। उन्हें यकीन हो चला था कि एन्जेलो ही उनकी बेटी को एक खुशहाल सुखी भविष्य दे सकता है, जिसकी वजह से वल्लरी कभी दुःख नहीं पाएगी। अतः दादू दादी, मातापिता ने एक दिन वल्लरी को एन्जेलो के साथ विवाह करने की अनुमति देने का मानस बना लिया। उस दिन वल्लरी का सत्ताइसवां जन्मदिन था। और उस दिन जैसे ही उसकी आंखें खुली, उसकी दादी ने उसका हाथ एन्जेलो के हाथ में देते हुए कहा, ..."सदा साथ साथ सुखी रहो मेरे बच्चों।"

खुशी के आंसुओं से नम हो आई आंखों से एन्जेलो के साथ आगत सुखद भविष्य के सुनहरे सपने देखती वल्लरी मुस्कुरा दी थी। खुली आंखों से देखा हुआ उसका ख्वाब आज पूरा हुआ और वह और एन्जेलो दादू दादी के कदमों में आशीर्वाद के लिए झुक गए|