वरिष्ठ लेखिका रेणु गुप्ता का एक सौ एक विचारोत्तेजक लघुकथाओं का नायाब संकलन ‘आधा है चंद्रमा’ नर्म जज़्बातों और तल्ख़ एहसासात से परिपूर्ण है, जो समाज में व्याप्त विसंगतियों पर प्रहार करने के साथ साथ पाठकों को उनकी बाबत सोचने पर मजबूर करता है।
पद्मश्री अशोक चक्रधर जी के अनुसार ‘इस संकलन की लघुकथाओं की खासियत यह है कि लगभग सभी गहन सामाजिक जागरूकता के साथ भावप्रधान हैं।’उन के अनुसार ‘रेणु गुप्ता अपने सौंधे एहसासों में छिपी हुई भारी-भरकम सोच को सतत जनमानस तक पहुंचा रही हैं, जो परिवार, समाज और रिश्तों-नातों में पैठी हुई विसंगतियों के प्रतिक्रियास्वरूप उनमें आत्मग्लानि का भाव तो लाये, लेकिन उसको इच्छा भर कम भी कर दे।’
नामचीन लघुकथा मर्मज्ञ श्रीमती कांता रॉय के अनुसार ‘रेणु गुप्ता के प्रथम लघुकथा संकलन ‘आधा है चंद्रमा’ की लघुकथाओं का फ़लक विषयों में विविधता के वैशिष्ट्य से समृद्ध है, साथ ही वह महिलाओं की समस्याओं को प्रतिबिंबित करने में सफल रही हैं। उनके अनुसार उनकी लघुकथाओं में भाषाई सौंदर्य के साथ दर्शन बोध, आध्यात्मिकता को स्थापित करते हुए मौलिक चिंतन को भी प्रश्रय मिला है।’
मेरा उपन्यास ’अंजुरी भर नेह’ के कथानक का ताना-बाना एक निर्धन किंतु कुशाग्र बुद्धि छात्र देवव्रत की जीवन गाथा के रूप में बुना गया है। देवव्रत एक ऐसा स्वाभिमानी विद्यार्थी है, जो कर्मठ होने के साथ-साथ अपनी उस लक्ष्मण रेखा से भी परिचित है जिसे उसे अपने प्रति अनुराग भाव रखने वाली उच्च जाति की रसूखदार परिवार की इकलौती संतान चंदा के साथ बनाए रखनी है। चंदा उसके प्रति मन में पलते अपने अनुराग भाव के चलते उसकी उच्च शिक्षा के खर्च को झेलने में जी जान से मदद करती है। जज बनने की उसकी महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु वह उसे भरसक प्रेरित करती है। देवव्रत मन ही मन उसे चाहता है लेकिन अपनी अभावग्रस्त, विपन्न पृष्ठभूमि के चलते स्वयं को उसके योग्य नहीं मानता और मौन रहता है। कभी भी खुल कर उसके प्रति अपनी चाहत का इजहार नहीं कर पाता।
अपने अथक परिश्रम से जब उसकी नियुक्ति सिविल जज के रूप में होती है, तब वह चंदा के समक्ष अपने प्रेम को अभिव्यक्त करता है किंतु कुछ प्रारब्ध का खेल, कुछ जाति भेद, सामाजिक स्तर में अंतर, वे दोनों विवाह बंधन में नहीं बंध पाए।
चंदा को वरदान के रूप में एक सुयोग्य उच्च पुलिस अधिकारी पति के रूप में मिलता है। दो बेटों की मां बन कर वह सुखी और संतुष्ट जीवन व्यतीत कर रही होती है।
आत्मिक संबंधों तथा परिवार से इतर मेरी दूसरी दुनिया है लेखन। अपने अति संवेदनशील स्वभाव के चलते मैं जो कुछ गहराई से महसूस करती हूं, उन्हीं सामान्य लेकिन मुझे असामान्य प्रतीत होती अनुभूतियों को कथा-कहानी के रूप में लिपिबद्ध करने का प्रयास करती रहती हूं।
माता-पिता के प्रोत्साहन से मेरे लेखन की शुरुआत हुई किशोरावस्था में, जब अपने पूर्व निवास स्थान असम में किसी आतंकवादी घटना से मन बहुत व्यथित हुआ और इस संताप ने एक कहानी ‘हवालात’ का रूप लिया।
सन 1980 से मैंने ऑल इंडिया रेडियो, गूवाहाटी से प्रसारित सामयिक वार्ता कार्यक्रम में वार्ता-वाचन आरंभ किया। सन् 1990 में एक दिन वही कहानी मैंने प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘सेंटीनल’ में प्रकाशन के लिए भेजी और वह प्रकाशित हो गई। उसके बाद से कहानियों के प्रकाशन का सिलसिला चल निकला।
मेरी धूपछांही ज़िंदगी का कोई रोशन कोना है, तो वह है पति श्री प्रदीप जी का बेशर्त सहयोग, साथ ही दो प्यारी एंजिनियरिंग कंसल्टेंट बेटियाँ, गरिमा और ताशी, एवं मेरी माँ एवं बहन-भाई ऋचा, वंदना, शलिनी एवं मयंक का सतत उत्साहवर्धन।
कभी-कभी सोचती हूं, लेखन मेरी ज़िंदगी में न होता तो शायद ज़िंदगी इतनी खुशगवार ना होती