“अम्मा, उस दिन एक नंबर वाली वर्मा आंटी ने अपनी सास की बरसी पर मेवे की खीर खिलाई थी न? वैसी खीर बना न आज। कित्ती अच्छी थी, है न अम्मा? बहुत मन कर रहा है वैसी खीर खाने का आज,” मन्नी ने घर घर सफाई बर्तन करने वाली अपनी माँ से कहा। “इत्ते ऊंचे सपने मत पाल री बिट्टो, मेवे खरीदने की अपनी औकात नहीं है। कोई मेवा हजार रुपये किलो से कम नहीं आती। हर घर से मुझे पूरे महीने की पगार ही बस हजार हजार बारह सौ रुपये मिलती है। हम गरीबों को इत्ते ऊंचे सपने सोभा नहीं देते लाड़ो। चल, मैं आज तेरे लिए चावल की खीर बना दूँगी, बस! अब तो खुश?” उधर पाँचवी कक्षा में पढ़ने वाली मन्नी के जेहन में टीचरजी की बात दंद मचाने लगी, 'हमेशा ऊंचे सपने देखो। सपने देखोगी, तभी उन्हें पूरा करने का हौसला पैदा होगा तुम्हारे अंदर,' और अम्मा कह रहीं हैं, इत्ते ऊंचे सपने मत पाल।’