बंद दरवाजा

“जीवा बेटा, तीन बजने आए, कब खाएगी खाना? गरम-गरम खा ले बेटा, क्यों ठंडा करके खाती है, जीवा की मां निशा ने अमेरिका की एक नामचीन एमएनसी में ऊंचे पद पर कार्यरत अपनी बेटी से कहा।

जीवा के कमरे का दरवाजा भिड़ा हुआ था ।

एक दो बार पुकारने पर भी जब जीवा का कोई जवाब नहीं आया, तो उसने धीमे से दरवाजा खोल कर भीतर झांका।

जीवा एक टेली कॉल में व्यस्त थी । उसे देख कर उसने तनिक झल्ला कर उन्हें वहां से जाने का इशारा कर दिया। निशा ने मायूस हो कर बेटी के कमरे का दरवाजा फिर से उढ़का दिया, और अपने कमरे में बेटी की प्रतीक्षा करते करते लेट गई ।

वह इसी सप्ताह तो बेटी के पास शिकागो अकेली आई थी।

यह उस की पहली विदेश यात्रा थी। जीवा को टैक्स ब्रेक के तौर पर माह भर वर्क फ़्रौम होम की सुविधा मिली थी। सो वह बेहद खुश खुश अमेरिका आई थी। पूरे एक साल बाद मिलने वाली थी वह उससे।

सोचा था, उसके एक माह के वर्क फ़्रौम होम में वह दिन भर उसके साथ रहेगी। उससे जी भर कर बातें करेगी। घूमेगी फिरेगी। लेकिन यहां आकर वह बेहद निराशा का अनुभव कर रही थी।

जीवा सुबह छै बजे जो अपना कमरा बंद करके लैपटॉप पर बैठती, तो शाम के छै सात बजे तक बेहद व्यस्त रहती। वह उसे उसका गर्मागर्म ब्रेकफास्ट और कॉफ़ी उसके कमरे में पहुंचा देती और वह देखती अपने काम के चक्कर में वह उन्हें भी ठंडा होने के बाद ही खातीपीती।

आज सुबह उसने बड़े चाव से उसके लिए पकौड़ियां सेकी थीं। वह उसे प्लेट भर पकौड़ियां हाथ में थमा कर आई थी, उसे उन्हें फ़ौरन खाने की ताकीद कर। लेकिन तभी उसकी एक कोई अर्जेंट कॉल आगई और एक घंटे बाद उसने उन्हें ठंडा खाया।

दोपहर के लंच का तो कोई समय ही नहीं होता उसका । उसका मन करता जब तक वह वहां है उसके पास, गुज़रे दिनों की तरह उसे तवे से उतरते गर्मागर्म फ़ुल्के खिला दे लेकिन उसने मुश्किल से एक आध दिन ही गर्म रोटी खाई। रोजाना वह मां को हिदायत दे कमरा बंद कर भीतर बैठ जाती कि वह खाना खा ले, उसका वेट ना करे।

यही सब सोचते सोचते कब निशा की आंख लग गई उसे पता न चला। कि अचानक निशा की आंख खुल गई। जीवा उसे झिंझोड़ कर जगा रही थी “यह क्या मां, पांच बजने आए और आपने अभी तक खाना नहीं खाया। मेरा तो यह रोज का वक्त है। सुबह से स्मूदी, लस्सी, फ्रूट्स वगैरह कुछ कुछ लेती रहती हूं। पांच बजे अपनी मीटिंग से फ़्री होकर अपने लिए दो फुलके सेकती हूं। लेकिन आपको तो जल्दी खाने की आदत है ना। मां आपको मेरी कसम, कल से आप अपने टाइम पर खाना जरूर से खा लीजिएगा। चलिए, आज मैं आपको फ़ुलके सेंक कर खिलाती हूं। अभी मेरे पास 20 मिनट का टाइम है। फिर मेरी कॉल है।

उसके ना ना करते करते भी उसने उसे जबरदस्ती खाने के लिए बैठा दिया, और फुर्ती से चपातियां सेंक कर उसे खिलाने लगी। दस मिनट में तो उसने मशीनी गति से उसके और अपने लिए फुल्के सेंक दिए थे।

उसे यूं फुर्ती से किचेन का काम करते देख वह सोच रही थी, “यह मेरी बेटी, अमेरिका आने से पहले जो रसोई में कभी कभार ही अपनी शक्ल दिखाती थी, अब रसोई के सारे काम इतनी कुशलता से बिना चूँ किए करने लगी थी। वह कभी अपने शानदार फ्लैट के ओपन किचन के प्लेटफार्म पर लैपटॉप पर काम करती नज़र आती, तो कभी पांच दस मिनट का टाइम मिलते ही डिश वाशर में बर्तन जमाती नजर आती या वॉशिंग मशीन में कपड़े डालते।

उसने एक लंबी सांस ली जिसे देख जीवा ने उससे पूछा, “क्या हुआ मां, यूं उसांस क्यों भर रही हो?”

“मैं कुछ सोच रही थी बेटा। तुम यह इतना पढ़ लिखकर कैसी जिंदगी जी रही हो। सुबह छै बजे से शाम के छै सात बजे तक दम मारने की फुर्सत नहीं मिलती तुम्हें। शाम तक थक कर इतना चूर हो जाती हो कि मुझसे बातें करने की हिम्मत भी नहीं बचती तुम्हारी। बारह बारह घंटे काम करके मशीन बन कर रह गई हो तुम तो। मैंने ऐसी जिंदगी तो नहीं चाही थी तुम्हारे लिए। माना कि इतनी सी उम्र में तुम अपने करियर में बेहद सफ़ल हो, हाई पोस्ट है, यहां विदेश में बेशुमार डॉलर कमा रही हो, लेकिन न खाने पीने का समय है, न किसी के साथ दो घड़ी बैठने का सुकून है। तो ऐसी जिंदगी किस काम की? जिंदगी बस यही तो नहीं। लौट आओ बेटा अपने देश। वहां पैसा जरूर कम है, लेकिन अपने हैं, अपनी जड़े हैं, सुकून है, चैन है। अपने इंडिया में कम से कम सुबह छै बजे से नौ साढ़े नौ का वक़्त तो अपना होता है जब इंसान तसल्ली से बैठ सकता है, अपनों के साथ चैन से चाय कॉफी की चुस्कियां ले सकता है, ढंग से खा पी सकता है। यहां तो छै बजे आँख खुलने के साथ साथ तेरा लैपटॉप ऑन हो जाता है। फिर यहाँ तुझे ऑफिस के काम के साथ साथ घर की भी एक एक ज़िम्मेदारी निभानी पड़ती है। अपने देश में तो हर काम के लिए हेल्प मिल जाती है। रोटी तो वही गिनी चुनी खानी है तो फिर इस पराये देश में रहना ही क्यों आखिर। प्लीज बेटा। तनिक सोच इस दिशा में।”

“अरे मां, आप फिर शुरू हो गईं। मां आप ही तो हमेशा कहा करती थी, ज़िंदगी में ऊंचाइयां छूओ। अब इसकी कुछ कीमत तो चुकानी पड़ेगी ना। बस अब खुश हो जाओ। कल शनिवार है ना। कल और परसों का पूरा दिन आपके नाम। प्रौमिज़... लैपटॉप को हाथ तक नहीं लगाऊंगी। जी भर कर बातें करेंगे और घूमेंगे फिरेंगे। कल पहले मिलेनियम पार्क चलेंगे। फिर यहाँ के सबसे बढ़िया इंडियन रेस्त्रां में लंच करेंगे। फिर मैं आपको मिशिगन नदी में क्रूज़ पर ले जाऊँगी। आपको क्रूज़ बेहद पसंद आएगी, और फिर वह उसे एक प्यार भरी झप्पी देकर फिर से अपना दरवाजा बंद कर कमरे में कैद हो गई।

निशा को लगा, उसका बंद दरवाजा उसे मुंह चिढ़ा रहा था।