चिकित्सक गण हमारे समाज का एक अभिन्न अंग हैं जो अपनी निःस्वार्थ सेवा भाव से मानवता की सेवा कर उन्हें रोग शोक ताप से त्राण दिलाते हैं। हम उनके ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते। आज महामारी की परिस्थितियों में 98% निःस्वार्थ सेवाभावी, अपने प्रोफ़ेशन को शत प्रतिशत समर्पित डॉक्टर्स के साथ साथ 2 % डॉक्टर्स ऐसे भी नज़र आ रहे हैं जो अपनी धन लोलुप, संवेदनहीन और भ्रष्ट प्रवृति के चलते येन केन प्रकारेण धन कमाने को ही अपने जीवन का उद्देश्य समझ बैठे हैं।
इस रचना को लिखने का उद्देश्य मात्र इस 2% वर्ग की असंवेदनशीलता एवं धन लोलुपता को सामने लाना है।
इस महामारी के समय 98% चिकित्सकों के वर्ग की निःस्वार्थ सेवाभावना को सादर नमन। हम उनके सदैव ऋणी रहेंगे।
-----
“डॉक्टर साहब, मेरी बीवी की हालत बहुत खराब हो रही है। ऑक्सीजन लेवल 60 आ रहा है।
“क्या 60, यह तो बहुत कम है. उसके लिए फौरन ऑक्सीज़न सिलिन्डर और अस्पताल में बेड का इंतजाम करिये।”
“मैंने पता किया, आस पास के किसी अस्पताल में जगह नहीं है। ऑक्सीज़न सिलिन्डर भी नहीं मिल रहे।”
“चलिये, चलिये, 50,000 रुपये ले आइये, दोनों चीजों का इंतजाम हो जाएगा।”
“क्या... 50,000? आश्चर्य से अभिजीत का मुंह खुला का खुला रह गया।
“अरे मिस्टर, शुक्र मनाइए, आप मेरे पुराने परमानेंट पेशेंट है। इसलिए मैंने आपको इतने कम रेट बताए हैं। शहर का हर अस्पताल फुल चल रहा है। मैं तो आपको बेड के साथ ऑक्सीज़न भी दे रहा हूँ।”
“डॉक्टर प्लीज, मैं 50,000 का इंतजाम कैसे करूंगा। इस कोरोना के चलते मेरी नौकरी भी नहीं रही। प्लीज डॉक्टर, कुछ तो कम करिए।”
“चलिए, आपके लिए मैं 5000 कम कर देता हूं। जल्दी से रुपये लाइये, और अपनी बीवी को हॉस्पिटल ले आइये।
“डॉक्टर प्लीज़, कुछ तो और कम कर दीजिए।”
“मिस्टर अभिजीत, 45,000 से एक पैसा कम नहीं लगेगा। चलिए, चलिए। मेरे दूसरे पेशेंट चेंबर के बाहर वेट कर रहे हैं।”
घोर घबराहट से अभिजीत के हाथ-पांव फूलने लगे थे।
अपनी पुरानी खटारा स्कूटी पर चलते-चलते अभिजीत सोच रहा था, इतने पैसों का इंतजाम कहां से करूं। कि तभी उसने सोचा बीवी के गहने. हां, उन्हें गिरवी रख देता हूं।
एक घंटे के भीतर बीवी के सारे गहने गिरवी रख अभिजीत ने 55,000 रुपयों का इंतजाम कर लिया। सारे पैसे लेकर वह अपने फैमिली डॉक्टर के आलीशान क्लीनिक में था।
“यह लीजिए डॉक्टर साहब, आपके रुपये।
“चलिए, आप अस्पताल पहुंचिए।”
अभिजीत दौड़ा दौड़ा घर पहुंचा। तभी उसकी नजर सांस लेने के लिए संघर्ष करती, हांफती, पसीने से लथपथ पत्नी पर पड़ी, और खौफ की एक लहर उसके बदन में दौड़ गई। उसने पत्नी को असीम ममता से सहलाया, “बस, बस, अभी पहुंचते हैं अस्पताल। बेड भी मिल गया, ऑक्सीज़न सिलिन्डर भी। ऑक्सीज़न लगते ही तू हिरण हो उठेगी,” मुस्कुराने की असफल कोशिश करते हुए अभिजीत पत्नी से बोला।
मन में हिसाब निरंतर चालू था। बस अब दवाइयों के लिए 10,000 बचे हैं। हे संकट मोचन हनुमान जी, 10,000 में दवाइयों का इंतजाम करवा देना। अब आपका ही आसरा है।”
अभिजीत ने पत्नी को अस्पताल में भर्ती कर दिया। ऑक्सीज़न भी चढ़ने लगी। फिर वह दवाइयां लेने बाज़ार चल पड़ा।
तभी लौटते वक़्त अस्पताल के सामने एक ठेले पर ताजे, चमकीले नींबू देखकर वह ठिठक कर ठेले के सामने खड़ा हो गया। सोचने लगा, नीना के लिए खरीद लूं। कोरोना में फायदा करेंगे।
“भैया, नींबू कैसे दिए?”
“100 रूपए किलो।”
“आधा किलो दे दो। कहकर उसने जेब में हाथ डाला और रुपए निकाले। जेब में मात्र 30 रुपये बचे थे। यह देखकर वह ठेले वाले से बोला “भैया रहने दो, मेरे पास पूरे पैसे नहीं हैं।”
उसकी हताश, पस्त मुखमुद्रा देख कर वह उससे बोला, “भाईजी, कोई बीमार है क्या?”
“हां भैया, मेरी बीवी को कोरोना हो गया है।”
“फिर तो नींबू ले ही जाओ। कहते हैं कोरोना में बहुत फायदा करते हैं। और अभी तो अस्पताल में रहोगे न। सो पैसे जब हों, तो बाद में दे देना। जाओ आपकी घरवाली आपकी राह देख रही होगी,” यह कहते हुए नींबू वाले ने उसको पूरे 1 किलो नींबू तोल कर उसके हाथ में थमा दिए और बोला “भैया जी फिकर ना करो। ऊपरवाला भली करेगा।” वह नम आंखों और भरे गले से उस गरीब नींबू वाले को देखता रह गया। कानों में आलीशान क्लीनिक में बैठे मोलभाव करते डॉक्टर के शब्द गूंजने लगे, “45,000 से एक पैसा कम नहीं लगेगा।”