मार्गदर्शन

रज्जू आज बेहद उदास था। उसकी दोनों हथेलियों में रह-रहकर तीखी टीस उठ रही थी, और उसके दोनों हाथ बुरी तरह दुख रहे थे क्योंकि उसकी गणित की टीचर ने आज स्कूल में उसे और उसके कुछ साथियों को बेंच पर आधे दिन हाथ ऊपर कर खड़ा रखा था। उसका दोष था तो सिर्फ इतना कि उसने आज भी गणित का गृहकार्य नहीं किया था।

अगले दिन मां के काम पर जाने के बाद वह स्कूल जाने की हिम्मत नहीं बटोर पा रहा था। गणित की टीचरजी की अपमानजनक डांट और हिकारतभरी नजरों ने उसके नन्हें मन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला था। आज गणित की गृहकार्य की कॉपी नहीं देने पर टीचरजी ने भरी क्लास में आग्नेय नेत्रों से उसे घूरते हुए और उसकी खिल्ली उड़ाते हुए उससे कहा था, “ये गणित तुम्हारे बस की बात नहीं है। जब पढ़ाई नहीं करनी तो सीधे-सादे घर क्यों नहीं बैठ जाते। रोज स्कूल आ जाते हो अपनी मनहूस सूरत लेकर।”

टीचरजी का उलाहना उसे रह-रह कर कचोट रहा था और बीते दिन की कसैली यादों से उसकी आंखों से आंसू बह आए, कि तभी पाणिनी दीदी ने उसके कमरे के बाहर से आवाज लगाई।

“रज्जू, अरे ओ रज्जू... जरा बाहर तो आ।”

पाणिनी दीदी की चिल्लाहट सुनकर वह अपने कमरे से बाहर निकल कर आया और उसने उनसे पूछा, “हां दीदी.............बोलो क्या बात है?”

“क्यूं रे, तू आज स्कूल नहीं गया? मैंने तुझसे कहा है न, चाहे कुछ भी हो, स्कूल में बेवजह की छुट्टी नहीं करनी है।”

“दीदी, वो... वो... “तनिक हकलाते हुए वह बोला, “मैंने आज गणित का गृहकार्य नहीं किया। कल गृहकार्य नहीं करने पर टीचरजी ने बहुत डांटा। इसलिए मैं आज स्कूल नहीं गया।”

“गृहकार्य क्यों नहीं किया तूने, पढ़ने में तो तेरा बिलकुल मन लगता नहीं है, अब गृहकार्य करना भी छोड़ दिया तूने?”

“वो दीदी, गणित की टीचर सवाल समझाती तो हैं, लेकिन पता नहीं क्यों मेरे कुछ समझ में नहीं आता है। फिर घर पर जब सवाल करने बैठता हूं तो कर ही नहीं पाता।”

“तो तूने समझ में नहीं आने की बात अपनी टीचर को बताई?”

“बताई है दीदी, लेकिन सवाल दोबारा पूछने पर वह मुझे डांट कर बैठा देती हैं। कहती हैं, मैं बस एक बार समझाऊंगी, दोबारा समझना है तो मेरे घर पर आकर मुझसे ट्यूशन पढ़ो। अब आप ही बताओ, सवालों को बिना समझे मैं गृहकार्य कैसे करूं? कल तो टीचरजी ने मुझे स्केल से मारा और हाथ ऊपर करके खड़ा कर दिया था आधे दिन?” बोलते-बोलते रज्जू का गला रुंध गया और आंसू बह निकले, जिसे देखकर पाणिनी पसीज उठी और उसने बड़ी नरमाई से रज्जू से कहा, “ मैंने कितनी बार कहा है न, पढ़ाई में कभी कोई दिक्कत होने पर मुझसे पूछ लिया कर। लेकिन तुझे तो गली के लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने से फुरसत मिले, तब तो तू पढ़ाई करेगा। चल जल्दी से आ जा, अपनी किताबें और कॉपियां लेकर। और जिस-जिस सब्जेक्ट में तुझे परेशानी आ रही है, मुझे बता।”

पाणिनी ने रज्जू को दो घंटे के करीब पढ़ाया था और सभी सब्जेक्ट में उसकी समस्याओं को हल किया। पढ़ाने के बाद उसने उसे समझाते हुए कहा, “रज्जू, अबसे स्कूल में एक भी छुट्टी नहीं करना। बेटा स्कूल नहीं जाएगा तो बड़ा आदमी कैसे बनेगा? तेरी मां दिन-दिन भर हमारे और दूसरों के घर में दिन-रात इतनी मेहनत-मजदूरी कर तेरा और अपना पेट पालती है, उसकी मेहनत को क्या तू यूं ही जाया होने देगा?”

रज्जू की मां शानो पाणिनी के घर के आउटहाउस में रहती थी रज्जू के साथ और उनके घर का सारा काम जैसे सफाई, बर्तन, खाना पकाना, कपड़े धोना आदि करती थी। पाणिनी और पड़ोस के घरों में यही काम करके बड़ी मुश्किल से अपना और बेटे का पेट भरती। उसके पति का लिवर ज्यादा शराब पीने के कारण खराब हो गया था और करीबन साल भर की बीमारी के बाद वह गुजर गया था।

पति की बीमारी में शानो पर बहुत कर्जा चढ़ गया था, जिसे उतारने के लिए वह दिन-रात हाड़तोड़ मेहनत करती। रज्जू भी तड़के ही घर-घर अखबार बांटने का काम करता और अखबार बांटने के बाद घर के पास के एक छोटे से स्कूल में पढ़ने जाता। उन दोनों की कमाई का आधे से ज्यादा पैसा कर्जा उतारने में खत्म हो जाता।

शानो पिछले कुछ वर्षों से पाणिनी के घर काम कर रही थी। उसका मृदु और मेहनती स्वभाव देखकर कुछ दिनों बाद पाणिनी की मां मोहिनी ने उसे अपने आउटहाउस में रहने की जगह दे दी थी, और पिछले कुछ वर्षों से वह रज्जू के साथ वहां रह रही थी। मोहिनी की दो बेटियां थीं, पाणिनी और मानिनी। दोनों ही पढ़ने में अति कुशाग्र बुद्धि की थीं। बड़ी मानिनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में बढ़िया पद पर नौकरी कर रही थी और छोटी पाणिनी इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष में अध्ययन कर रही थी।

मोहिनी और बेटी पाणिनी के मार्गनिर्देशन में रज्जू भी स्कूल जाने लगा था और ठीक-ठाक नंबर ले आता था। लेकिन इस साल जबसे वह आठवीं कक्षा में आया था, उसे गणित और अंग्रेजी में सब्जेक्ट में बहुत कठिनाई आ रही थी। अभी आज ही उसने पाणिनी को बताया था, कि उसकी अंग्रेजी की टीचर उससे अच्छा व्यवहार नहीं करती। वह उसे पूरी कक्षा के सामने ‘यू फ़ूल एंड डफ़र’ बोलती है और पाठ की रीडिंग के वक्त उसके गलत उच्चारण करने पर उसे रीडिंग नहीं करने देती और बैठा देती है यह कहते हुए कि, “तू तो निरा गंवार है, यह अंग्रेजी पढ़कर तू क्या करेगा?” अंग्रेजी की टीचर उसकी क्लास टीचर भी थी और रज्जू ने ही पाणिनी को बताया था कि वह उसे हमेशा सबसे पीछे की सीट पर अकेला बैठने को कहती है क्योंकि उसके कपड़े गंदे होते हैं और उनमें से बदबू आती है।

उस दिन पाणिनी कॉलेज से बहुत जल्दी लौट आई थी और घर लौट कर उसने देखा कि शानो रज्जू को बुरी तरह से पीट रही थी और वह सुबकियां लेते हुए रो रहा था।

पूछने पर शानो ने पाणिनी को बताया था कि रज्जू उस दिन फिर स्कूल नहीं गया था। वह आजकल गलत संगति में पड़ गया है और आज ही वह उनके घर के भंडारघर से कांसे की एक पुरानी भारी थाली पुराने बर्तनों की दुकान पर बेचकर वहां से रुपए लेकर दोस्तों के साथ सिनेमा देखने चला गया था

मोहिनी और पाणिनी ने उस दिन रज्जू को बहुत समझाया। पाणिनी ने उससे कहा कि “अबसे मैं तुझे रोज अंग्रेजी और गणित पढ़ाऊंगी, जब तक कि इन सब्जेक्ट में तेरी सारी समस्याएं खत्म नहीं हो जातीं।”

मोहिनी ने शानो से कहा कि वह रज्जू को रोज सुबह स्कूल भेजने के बाद ही अपने काम पर जाया करे, जिससे रज्जू को स्कूल में छुट्टी करने का मौका ही नहीं मिल सके।

वक्त यूं बीतता गया। रज्जू का आठवीं कक्षा का परिणाम आज ही घोषित हुआ है। पाणिनी के रोज पढ़ाने से रज्जू की गणित और अंग्रेजी की मुश्किलें लगभग खत्म हो गई हैं, और इस बार वह गणित और अंग्रेजी समेत सभी विषयों में बहुत अच्छे नंबर लाया है।

रज्जू जैसे-जैसे बड़ा हो रहा है, पाणिनी की सतत देख-रेख में अध्ययन में उसकी रुचि बढ़ती जा रही है।

अब वह बात-बात पर स्कूल की छुट्टी नहीं करता। उसकी दिली ख्वाहिश है पाणिनी और मानिनी के समान इंजीनियर बनने की। देखना यह है कि उसके हौसले उसे किन ऊंचाइयों तक पहुंचाते हैं?

मैं सोच रही हूं, रज्जू को तो मोहिनी और पाणिनी का मार्गदर्शन मिल गया लेकिन देश के उन असंख्य रज्जुओं का क्या, जो कई स्कूलों में शिक्षक-शिक्षिकाओं की अपने विद्यार्थियों के प्रति उदासीनता, बेरूखी और उनके हतोत्साहन से पढ़ाई और स्कूल छोड़ शिक्षा से हमेशा के लिए विमुख हो जाते हैं और एक अंधकारमय, चिरअभाव ग्रस्त, अभिशप्त जीवन जीने के लिए विवश हैं।