मकसद

"मुझे तो एक नन्हीं सी, स्वीट सी डॉल चाहिए, बिल्कुल तुम्हारे जैसी नीली आंखों वाली। जो हंसे तो उसके चेहरे पर भी तुम्हारे जैसे डिंपल पड़ें। ", " ऊं..........नहीं, मुझे बेटी नहीं चाहिए। मुझे तो एक बेटे की तमन्ना है जो मुझे हर पल तुम्हारी याद दिलाए। तुम पास नहीं होते हो तो मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है। तुम्हारे जैसा बेटा होगा तो तुम्हारी याद कम आएगी। उसकी शक्ल में तुम हमेशा मेरे सामने होगे।"

"अच्छा जी, बेटा अभी हुआ नहीं और मेरी याद कम आएगी?"

" तो जैलस फील कर रहे हो?"

यूं प्यार भरी इस नोक झोंक में मेजर आहान और अविका के दिन गुजर रहे थे। मेजर आहान तीन माह की छुट्टियों पर घर आए हुए थे। उसकी पोस्टिंग सुदूर नागालैंड के एक दुर्लभ पहाड़ी आर्मी स्टेशन पर थी आजकल।

आहान के साथ हंसी चुहल गपशप में कैसे समय बीत जाता था, पता ही नहीं चलता था। एक दूसरे के साथ को तरसते पति पत्नी जब भी मिलते, एक दूसरे में खो जाते। दीन दुनिया से बेखबर लव बर्डस एक दूसरे की आंखों में झांक अपने लिए अगले की प्रीत प्यार की गहराई का अंदाजा लगाते न थकते। अपने घर में ही जंगल में मंगल कर लेते।

" अविका!"

"हूं!"

"मैं अपनी बेटी को आर्मी ऑफिसर बनाऊंगा। मेरी दिली तमन्ना है उसे खाकी यूनिफार्म में देखने की, पासिंग आउट परेड में उसे कमीशंड ऑफिसर बनता हुआ देखने की। पापा आर्मी में हैं ही, मेरे दादाजी और परदादा जी भी आर्मी में थे। अब मेरी बेटी भी आर्मी में जाएगी। मैं यह फैमिली ट्रेडिशन कायम रखना चाहता हूं।"

" ठीक है ठीक है, मुझे बेटी चाहिए, तुम्हें बैटा चाहिए तो इसके बाद एक चांस और लेंगे। दोनों की ही इच्छाएं पूरी होनी चाहिए।" 
“ठीक है, तुम कहते हो तो दूसरा चान्स भी ले लूंगी।" और अविका खिलखिलाकर हंस दी और आहान मंत्रमुग्ध उसकी मोहक मुस्कान और डिंपल को देखता रह गया। 
इस तरह दोनों आगत भविष्य के रूपहले सपने बुनते रहते। लेकिन किसे मालूम था कि क्रूर काल का एक निर्मम आघात उनकी नेहप्रीत के फूलों से गुलजार हरी भरी बगिया को तहस-नहस कर उनके सारे सपनों , सारी आशाओं को एक झटके में खत्म कर देगा।

अभी आहान की छुट्टियों का एक माह ही बीता था कि अचानक मिजो आतंकवादियों ने प्रदेश में जगह-जगह पर हमला बोल दिया था। इसलिए उसकी सारी छुट्टियां रद्द कर दी गईं थीं। और उसे खिन्न मन अविका को छोड़ नौकरी पर जाना पड़ा था।

अपने स्टेशन पर पहुंच आहान ने अगले ही दिन ड्यूटी जॉइन कर ली थी कि रात को ही उसके कैंप पर मिजो आतंकवादियों का हमला हुआ था। मेजर आहान ने अपने अन्य एक सहकर्मी के साथ करीब पांच घंटों तक आतंकवादियों का बड़ी हिम्मत से मुकाबला किया, लेकिन आखिरकार सीने में एक गोली खाकर यह वीर अपनी मातृभूमि की बलिवेदी पर शहीद हो गया था।

उधर उस दिन आहान के जीवन पर मंडराते क्रूर काल का आभास शायद अविका को हो गया था।

तभी जब रात को आहान आतंकवादियों के खिलाफ मोर्चे पर डटे हुए दुश्मनों से लोहा ले रहा था, अविका के अंतः स्थल में एक अबूझ विकलता ने डेरा डाला हुआ था। सारी रात वह गहरी नींद सो पाने में विफल रही थी। आहान को लेकर बुरी बुरी दुश्चिंताओं के साए उसे घेरते रहे और अर्ध चेतना की अघसोई अघजागी स्थिति में उसने आहान के अंतरंग सानिध्य में रात बिताई थी। कभी उसे दिखता, आहान हंसता चहकता उसके करीब उससे किए गए वायदे दोहरा रहा है, तो कभी उसे लगता आहान उससे पीठ मोड़ उससे दूर भाग रहा है और वह शून्य में बाहें पसारे उसके पीछे पीछे बेदम बदहवास भाग रही थी कि तभी देखते देखते आहान अचानक घने घुंए के एक गुबार में समा गया था। वह आहान आहान आवाज देती रह गई थी लेकिन फिर आहान उसे नहीं दिखा। इस दुःस्वप्न से बेहद घबराकर पसीना-पसीना हो वह जगी और चैतन्य हुई और उसने झपटकर आहान से फोन पर बात करने के लिए उसे फोन मिलाया, लेकिन आहान का फोन नहीं मिला।

उसी दिन ठीक उसी वक्त आहान अविका का जन्म जन्मांतरों का बंधन तोड़ अपनी अंतिम यात्रा पर निकल गया था। उसके माता पिता को तत्काल ही उसकी दुखद मृत्यु का समाचार दे दिया गया। उन्होंने आहान के वरिष्ठ अफसरों से अनुरोध किया कि अविका की प्रेगनेंसी के मद्देनजर उसे उस वक्त आहान की मृत्यु की खबर नहीं दी जाए, जिससे उसको स्वयं को एवं गर्भस्थ शिशु के जीवन को खतरा हो सकता है। अफसरों ने आहान के माता पिता की यह मांग स्वीकार कर ली थी और अविका को बताया गया था कि आहान को अचानक किसी दुर्गम क्षेत्र में भेजा गया है जहां इंटरनेट या फोन के माध्यम से उससे संपर्क नहीं हो सकता।

अविका की प्रेगनेंसी का आखिरी महीना चल रहा था। पति सात जन्मों का रिश्ता एक झटके में तोड़ बैठा था। पति की मृत्यु के बाद तो अविका एक अबूझ बेचैनी का अनुभव कर रही थी। बार-बार सोचती, ‘काश आहान की छुट्टियां खत्म न हुई होतीं। काश, अभी वह उसके साथ होता।’ उस दुर्गम इलाके में पोस्टिंग से पहले वह दिन का काफी वक्त पति के साथ वीडियो चैटिंग में गुजरती थी। पति को सामने देख उससे दूरी का असंतोष बहुत हद तक कम हो जाता था। लेकिन अब न तो उससे बात ही हो पा रही थी न ही वाट्सएप पर संदेशों का आदान प्रदान। फिर पति के हमेशा के लिए चले जाने से वह एक अजीब सी विकलता का अनुभव कर रही थी जो उसे सुकून से सांस तक लेने नहीं दे रही थी।

इस तरह दिन बीतते गए। नियत समय पर अविका ने एक गदबदी सी, नीली आंखों वाली अपने जैसी सुंदर नन्हीं सी परी को जन्म दिया था। बेटी को गोद में पाकर उसे लगा था मानो अब और कोई तमन्ना शेष न रही थी। बेटी का नाम आहान की इच्छा अनुसार उसने नमामि रखा था। पति आहान ने न जाने कितनी हिंदी अंग्रेजी की डिक्शनरी खंगालकर बेटी के लिए यह अनूठा नाम सोचा था।

नमामि अब तीन माह की होने आई थी। पति से अभी तक उसका संपर्क बाधित था। घर के सभी बड़े लोगों की सहमति से अविका आहान की मृत्यु की खबर दी गई।

यह मर्मांतक खबर सुन अविका मानो अस्तित्वहीन हो गई थी। खबर सुनते ही एक ह्रदय विदारक चीख निकली थी उसके कलेजे से। फिर वह घंटों फूट-फूट कर रोती रही थी। यूं अचानक पति के साथ छोड़ जाने से वह अपनी सुध-बुध खो बैठी थी। दीन दुनिया का कुछ होश नहीं रहा था उसे। कभी सुबक सुबक कर रोती, तो कभी आहान से बातें करती... “क्यों इतनी निष्ठुरता से इतनी जल्दी मेरा साथ छोड़ गए? बस इतने ही दिन मेरा साथ निभाना था तो मेरा हाथ थामा ही क्यों था?”

उस दिन आहान का सारा सामान उसके शहर से आया था। आहान की यूनिफार्म, जूते, घड़ी आदि को देखकर अविका फूट फूट कर रोई। उसके पहने हुए कपड़ों को सीने से लगाकर आहान की देह गंध को महसूस कर वह मानो बौरा सी गई। उसने आहान के स्वेटर और जैकेट यूं के यूं बिना धोए अलमारी में टांग दिए थे। जब भी आहान की याद से उसका दिल टूटता, उसका स्वेटर पहन उसे लगता मानो आहान उसके बेहद करीब है। अपना दरवाजा बंद कर वह घंटों उससे बातें करती।

अविका की यह हालत देख उसके माता-पिता और सास ससुर का कलेजा छलनी हो आता। इतनी कच्ची उम्र में अविका को मिले वैधव्य के दुःख ने उनकी कमर तोड़ दी थी।

यूं आहान के देहांत के बाद का एक वर्ष ठिठकते, ठहरते रेंगती चाल से बीत ही गया था। जब भी नन्हीं नमामि का चांद सा चेहरा देखती, आहान के शब्द कानों में गूंजने लगते, "मेरी बेटी बड़ी होकर देश की सेवा करेगी। आर्मी ऑफिसर बनेगी।"

कि तभी एक दिन अखबार में आर्मी महिला ऑफिसर्स के लिए वैकेंसी देख उसकी सोच को एक नई दिशा मिली थी। वह अभी मात सत्ताइस वर्ष की थी। महिला आर्मी ऑफिसर की पात्रता की सारी शर्तें पूरी करती थी। तो क्यों ना वह भी आर्मी ज्वाइन कर ले। आहान को कितना अच्छा लगेगा उसे खाकी वर्दी में देखकर। बहुत सोच-विचारकर उसने अपने इस निर्णय से अपने और आहान के माता-पिता को अवगत कराया था। प्रतियोगी परीक्षा के लिए पढ़ाई करेगी तो ध्यान बंटेगा, यह सोच कर सभी ने खुशी खुशी उसे परीक्षा की तैयारी करने के लिए प्रोत्साहित किया था।

अविका ने आनन-फानन में ऑफिसर के पद के लिए आवेदन कर दिया और कमर कसकर अध्ययन में जुट गई। उस दिन पहली बार नई किताबें पढ़ना शुरू करने से पहले उसने देर रात नमामि को सुलाकर आहान का स्वेटर पहना और उसके हृदय की धड़कन तेज हो गई थी। उसे लगा था आहान उसके बेहद नज़दीक था। दिसंबर की हल्की हल्की चढ़ती ठंड में सीने पर हाथ बांध वह मन ही मन आहान से बातें करने लगी थी...''आहान तुम अपनी बेटी को आर्मी ऑफिसर बनाना चाहते थे न। वह तो बनेगी ही,. उसमें तो अभी बहुत वक्त है। उससे पहले आर्मी की वर्दी मैं पहनूंगी। मैंने संकल्प लिया है कि मैं भी आर्मी जॉइन करुंगी। तुम जहां भी हो, मुझे खाकी वर्दी में देखकर बहुत खुश होगे न आहान। तो चलो, मुझे विश करो, बेस्ट ऑफ लक बोलो।"

यह कहकर उसने आहान का फोटो चूम लिया।

अविका ने इस परीक्षा की तैयारी में दिन रात एक कर दिया था। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करना उसकी जिंदगी का मकसद बन गया था। उसका जुनून बन गया था। और आखिरकार परिणाम का दिन आ पहुंचा था लेकिन नियति को शायद उसे इतनी जल्दी खुशी देना मंजूर नहीं था। डूबते दिल से उसने परिणाम तालिका को ऊपर से नीचे तक एक सांस में पढ़ा था। लेकिन उसका नाम कहीं नहीं था, लेकिन इस असफलता से उसके इरादे कमजोर नहीं पड़े। बल्कि इस बार वह दोहरे संकल्प के साथ परीक्षा की तैयारी में जुट गई।

हिम्मत और लगन के सामने नियति भी घुटने टेक देती है। अपने मजबूत इरादों से लैस अविका ने इस बार प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी।

आज आहान का बत्तीसवां जन्मदिन था और अविका को आज कमीशन मिलने वाला था। अपनी नई निकोरी खाकी वर्दी पहन उसने आहान के फोटो के सामने एकांत में केक काटा और कहा, " जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक आहान। आज के दिन तुम्हारे लिए यह मेरा नायाब तोहफा है..।" यह कहते हुए उसने नम हो आई आंखों से पति को एक कड़क सेल्यूट किया।
वक़्त का अंतहीन कारवां अपनी ही चाल चलता गया।

आर्मी ऑफिसर बने अविका को पांच वर्ष होने आए हैं। अविका बहुत हद तक आहान की मौत के सदमे से उबर चुकी है। जिंदगी एक निश्चित ढर्रे पर चल निकली है। पति के असमय साथ छोड़ जाने के दुःख के अलावा अब उसे और कोई गम नहीं है। आर्मी में एक विश्वसनीय, जिम्मेदार कर्तव्यपरायण ऑफिसर की छवि है उसकी। आहान अपने माता पिता का इकलौता बेटा था। अविका भी अपने माता पिता की एकमात्र संतान थी। सो दोनों ओर के माता पिता उसके साथ ही रहते थे। वह वृद्धावस्था में उनकी बहुत समर्पित भाव से देखभाल करती है। आहान और स्वयं उसके माता पिता उसे दुआएं देते नहीं थकते। फौजी परिवेश में पली-बढ़ी नमामि की आंखों में भी फौजी अफसर बनने का मधुर सपना न जाने कब से झिलमिला रहा है। वह बस प्रतीक्षा कर रही अपने बड़े होने की कि कब वह प्रतियोगी परीक्षा देगी।

उस दिन शाम के सात बजे थे। अविका मेजर वर्मा के साथ अपनी कॉलोनी के क्लब के बैडमिंटन कोर्ट में बैडमिंटन खेल रही थी। मेजर वर्मा अविका के अच्छे मित्रों में से एक थे। खेल खत्म कर अविका और मेजर वर्मा साथ साथ घर लौट रहे थे, कि तभी मेजर वर्मा ने अविका से कहा," कैप्टेन अविका, मैं एक नितांत व्यक्तिगत बात आपसे शेयर करना चाहता हूं। आपकी इजाजत है?"

"हां हां मेजर वर्मा यू आर मोस्ट वेलकम"

"अपना इतने वर्षों का साथ है, मेरे सत्यम को एक मां की जरूरत है और तुम्हारी नमामि को एक पिता की। बिना पत्नी के मैं उसकी वह परवरिश नहीं कर पा रहा जो उसकी होनी चाहिए। बिना मां के मेरा बच्चा मुर्झा रहा है। तो मैं सीधे सीधे मुद्दे पर आता हूं। क्या हम दोनों विवाह के बंधन में बन सकते हैं?”

“मेजर वर्मा, आप मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं, और मैं आपकी बहुत इज्जत करती हूं। लेकिन मेजर साब, मेरी जिंदगी में दूसरे विवाह के लिए कोई जगह नहीं है। मैंने अपनी जिंदगी के मकसद चुन लिए हैं। उनको ठीक ढंग से पूरा करना ही मेरी जिंदगी का एकमात्र ध्येय है। मुझे अपनी बेटी को एक अच्छा इंसान बनाना है। फिर उसे आर्मी ऑफिसर बनाना है। मेरे ऊपर अपने माता-पिता एवं सास ससुर की देखभाल की गंभीर जिम्मेदारी भी है। मेरी इस छोटी सी दुनिया में और किसी के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। प्लीज आगे से अब कभी यह बात मुझसे मत कहिएगा। नहीं तो मुझे डर है, मैं आपसे दोस्ती का रिश्ता भी नहीं रख पाऊंगी।"

यह कहकर अविका आंखों में मजबूत इरादों की चमक लिए तेज चाल से लंबे डग भरती हुई आगे बढ़ गई।