मुट्ठी भर आसमां

केतकी बेहद खिन्नता का अनुभव कर रही थी। सामने के घर से आती शहनाई की मधुर स्वरलहरी भी आज उसे अप्रिय लग रही थी। मनन से विवाह के लिए ना कर तम्मा ने उसे निराश कर दिया था। बार बार एक कसक उठ रही थी उसके दिल में, काश तम्मा आज मनन से रिश्ते के लिए हामी भर देती तो उसके आँगन भी शहनाई बजती। लेकिन तम्मा की एक ना ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया था। और वह निराशा के गहरे दलदल में धंसती जा रही थी।

केतकी के स्वभाव में बहुत बचपना था। पचास वर्ष की परिपक्व उम्र होने आई थी उसकी, लेकिन अभी भी अपने स्वभावगत बचपनेपन की वजह से अपना सोचा हुआ पूरा ना होने पर बहुत दुःख पाती थी। किसी भी चीज को पाने की इच्छा करती तो ऐसे मानो एक शिशु चाँद के लिए मचल उठा हो। आज वह एक शिशु की ही तरह ही तो तम्मा को अपनी बहु के रूप में पाने के लिए लालायित हो उठी थी। अब मनन के लिए तम्मा जैसी सर्वगुणसम्पन्न लड़की कहाँ ढूँढूँ, डूबते ह्रदय से उसने सोचा।

अंतर्मन की परतों की सीवन अनायास टांका दर टांका उधड़ने लगी थी और अंतस की भीतरी तहों में दबी बीते दिनों की यादें उसके सामने एक एक कर जीवंत हो उठीं जब लगभग नौ दस वर्ष की तम्मा पहली बार उसके घर आई थी।

इतने बरस बीत जाने पर भी आज भी उसे अच्छी तरह से याद है, उसकी नौकरानी अचानक बीमार पड़ गई थी। शाम को ढेरों मेहमान आने वाले थे। वह रोज तड़के ही घर के पास वाले मंदिर जाया करती थी जहाँ वह रोजाना एक नौ दस वर्ष की लड़की को मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा देखा करती थी। उसका चेहरा कभी उसे पूरी तरह से साफ़ नजर नहीं आया था। उस पर सदैव न जाने कैसे दाग धब्बे नजर आते। लेकिन इसके बावजूद उस चेहरे की निर्दोष गढन उसकी मासूमियत बयां करने से नहीं रुकती। सो वह छुटमुट कामों में अपना हाथ बंटाने उसे अपने घर ले आई थी। जब वह नहा धो कर निकली थी, उसके अप्रतिम रूप सौंदर्य को देख कर उसकी आँखें चौंधियाँ गईं। उसकी भोली चितवन देख कर उसे लगा था, कीचड में कमल खिला था। उसका अद्भुत रूप रंग देख कर उसने उससे पूछा, “तम्मा, नहा धो कर तो तू गोरी चिट्टी निकल आई है, लेकिन तेरे चेहरे पर ये काले काले दाग धब्बे कैसे लगे रहते हैं रोज़?”

“आंटी ये दाग धब्बे हम बेघरबार भिखारियों का दिठौना हैं। हम लोगों का कोई घर बार तो है नहीं। खुले आसमान तले न जाने कितनों की बुरी नज़रें सहनी पड़ती हैं दिन भर में हम जैसी लड़कियों को। लोगों की बुरी नजरों से बचाने के लिए मेरी माँ थोड़ी सी राख मेरे मुंह पर मल देती थीं। मंदिर में हम सभी लड़कियों की माँएँ ऐसा ही करती हैं।पिछले बरस ही मेरी माँ गुजर गई। अब मैं खुद सुबह कुल्ला करके अपने चेहरे पर राख मल लेती हूँ। पता है आंटी, अभी परसों ही सुबह सुबह मैंने हाथ मुंह धोए ही थे कि एक लड़के ने मुझसे पूछा था, “मेरे साथ चलेगी, मैं तुझे खूब सारी चॉकलेट और मिठाइयां दूंगा। बढ़िया कपडे और बढ़िया खाना भी दूंगा।” “ये दुनिया बहुत बुरी है आंटी, हम भिखारियों को भी चैन से नहीं जीने देती है।”

और केतकी तम्मा को इतने भोलेपन से इतनी बड़ी बड़ी बातें करती देख दंग रह गई थी। वह सोच रही थी, विधाता ने बड़ी फुर्सत से गढ़ा था उसे,रूप रंग तो खुले हाथों लुटा दिया लेकिन किस्मत के खाने में निरे शून्य डाल दिये।

उस दिन के बाद से तम्मा केतकी के घर की हो कर रह गई। नौकरानी बना कर लाई गयी थी और घर की बेटी बन गयी। इतनी लगन और ईमानदारी से केतकी का दिया हर काम करती कि उसे खोने के डर से केतकी के हाथ पैर ठन्डे पड़ जाते। पति, सास , ससुरजी के शुरूआती विरोध के बावजूद वह उसे घर से मंदिर वापिस भेजने को राजी नहीं हुई थी। एकाध वर्ष तो वह सिर्फ घर के कामों के लिए रखी गई। लेकिन धीरे धीरे वक़्त गुजरने के साथ उसने अपने मीठे और मेहनती स्वाभाव से घर के हर सदस्य के मन में अपनी जगह बना ली थी। उच्च शिक्षित केतकी और शिरीष दोनों का मानना था कि उस जैसी प्रतिभाशाली बच्ची को शिक्षा के मूलभूत अधिकार से वंचित रखना एक अक्षम्य अपराध होगा। सो केतकी ने उसे थोड़े दिन स्वयं घर पर पढ़ा पास के एक प्राइवेट स्कूल में डाल दिया था। पढाई और घर के कामों में गज़ब का संतुलन बनाते हुए वह केतकी और दूसरों का दिया हुआ हर काम बड़ी लगन और मुस्तैदी से करती। साथ ही पढाई भी उतनी ही दत्तचित्तता से करती। अपनी कड़ी मेहनत से वह साल दर साल उत्कृष्ट परिणाम देती। केतकी और पति शिरीष दोनों यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर थे। पैसे की कोई कमी न थी। सो तम्मा की मेधा देखते हुए उन्होंने घर के कामों के लिए दूसरा इंतजाम कर लिया था। और अब तम्मा अपना सारा वक़्त पढाई में गुजारती।

तम्मा ने अपने मृदुल, स्नेही और केयरिंग स्वाभाव से घर की बेटी की जगह ले ली थी। उनका एकमात्र बेटा मनन तो पांचवी कक्षा के बाद से प्रतिष्ठित दून स्कूल पढ़ने चला गया था। सो केतकी और शिरीष अपने अंतस का सारा ममत्व और दुलार उस पर उड़ेलते। उसे हाथों हाथ रखते। बाहरवालों को केतकी और शिरीष ने तम्मा का परिचय एक अभिन्न मित्र की बेटी के रूप में दे रखा था जिनका देहांत एक दुर्घटना में हो गया था।

खट्टे मीठे पलों का साक्षी समय अपनी ही चाल से गुजरता गया। तम्मा अपनी कुशाग्र बुद्धि और केतकी और शिरीष के भरपूर प्रोत्साहन के दम पर एक प्रतिष्ठित कालेज से इंजिनीयरिंग और एमबीए की पढाई पूरी कर चुकी थी और दिल्ली की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी कर रही थी। बेटा मनन भी इंजिनीयरिंग और एमबीए कर एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में अमेरिका गया हुआ था।

केतकी और शिरीष अब मनन के विवाह के विषय में सोचने लगे। मनन के लिए लड़कियों की कमी न थी। उच्चा शिक्षा प्राप्त, मोटी तनख्वाह पर कार्यरत सुदर्शन, सौम्य व्यक्तित्व के मनन को वर के रूप में पाने के लिए योग्य लड़कियों की लाइन लग गई थी।लेकिन अभी तक केतकी को कोई भी ऐसी लड़की नहीं मिली थी जिसे देख कर उसके दिल से आवाज़ आती कि बस यही लड़की मनन के लिए बनी है। कोई लड़की उसे जरूरत से अधिक उन्मुक्त और बातूनी लगती तो कोई उसे आवश्यकता से अधिक शांत और अंतर्मुखी। किसी के चेहरे की गढ़न उसे नहीं भाती तो किसी की आवाज में उसे दोष नजर आता कि एक दिन उसकी अंतरंग सहेली वाणी उसके घर आई हुई थी जिसने उससे कहा था, “केतकी तुम मनन के लिए अच्छी लड़की ढूंढने में इतनी परेशान हो रही हो, लड़की तो तुम्हारे घर में ही है। यह तो वही बात हुई, बगल में छोरा, नगर में ढिंढोरा।”

“लड़की मेरे घर में है, मज़ाक कर रही हो क्या? कौन सी लड़की है मेरे घर में?”

“अरे मैं तम्मा की बात कर रही हूँ। रूप, रंग, शिक्षा दीक्षा,किसमें उन्नीस है तुम्हारी तम्मा? फिर गुण,संस्कार तो तुम्हारे ही दिये हुए हैं। केयरिंग और स्नेही तो तुम ही बताती हो इतनी है कि तुम्हें और शिरीषजी को वह हाथों हाथ रखती है। जब पिछले वर्ष तुम्हें टाइफाइड हुआ था , कैसे रातोंरात जग कर उसने तुम्हारी सेवा की थी? एक पांव पर खड़ी रहती थी लड़की तुम्हारी बीमारी में। फिर रूपरंग में उसके जैसी ढूँढे नहीं मिलेगी तुम्हें। अगली सात पुश्तों के रंग रूप की गारंटी देती हूँ तुम्हें अगर इसे अपनी बहू बना लिया तुमने तो। अहा, कैसी देव प्रतिमा सा मोहक चेहरा है, कैसी रसभीनी बड़ी बड़ी आंखे हैं लड़की की, उसकी सुंदरता देख तो अर्थी पर पड़ा मुर्दा भी उठ बैठेगा।”

सहेली की इन बातों ने केतकी के शांत अंत:करण में हलचल मचा दी थी। लेकिन तत्क्षण ही इस सोच को उसके भिखारी होने के सत्य ने शांत कर दिया था। नहीं नहीं, उसे घर में रखना, बेटी मानना दूसरी बात है, अपने बेटे की बहू बनाना दूसरी बात। जान बूझ कर तो मक्खी नहीं निगली जाती न, उसने सोचा।

लेकिन वाणी का तम्मा को अपनी बहू बनाने का सुझाव बार बार उसकी सोच में प्रतिध्वनित हो रहा था। भावना कहती, वह एक रास्ते पर पड़ी हुई मात्र एक तुच्छ भिखारिन थी। कुलगोत्रविहीन बेनाम अस्तित्व थी। उसे कुलवधू बनाना क्या उनके उच्च्वर्गीय कुलीन खानदान पर एक धब्बा नहीं लगा देगा? दूसरी ओर तर्क कहता, जन्म के दम पर कौन क्या बन पाया है आजतक? शिक्षा, संस्कारों, गुणों की थाती तो भरपूर सौंपी है उसने तम्मा को, जिसके दम पर वह अगली सात पीढ़ियों तक उसके कुल में उजास फैला सकती है। भावना और तर्क की इस जद्दोजहद से केतकी का मानसिक तनाव अपने चरम पर पहुँच गया था, और उसके स्नायु तन उठे।

केतकी के मानस में यह अंतर्द्वंद बहुत देर तक जारी रहा। कभी तर्क का पलड़ा भारी हो जाता तो कभी भावना गुरुतर हो उठती, और केतकी अनिश्चय और द्विविधा में फंसी किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पा रही थी।

अन्तर्मन में आए भीषण झंझावात का प्रतिबिंब उसके चेहरे पर स्पष्ट झलक रहा था। उसका चेहरा निस्तेज पड़ गया था कि तभी तम्मा कालेज से लौट आई थी।माँ का जर्द चेहरा देख वह बोली, “माँ आपकी तबीयत ठीक नहीं लग रही। अभी कड़क अदरक इलायची की चाय बना कर लाती हूँ और आपके कंधों की मालिश कर देती हूँ। आप फौरन बेहतर महसूस करोगी।”

अपना बैग पलंग पर फेंक बिना एक पल भी सांस लिए तम्मा रसोई में घुस गई। माँ के हाथ में गर्मागर्म चाय की प्याली थमा तम्मा उसके कंधे दबाने लगी, जिससे केतकी को अत्यंत राहत मिली, और तम्मा का उसके प्रति यह वात्सल्य, लाड़ दुलार केतकी की दुविधा को अंत करने में सफल हुआ। कोई और लड़की क्या उनकी और मनन की वैसी केयर कर पाएगी, वो ममत्व दे पाएगी जो तम्मा उन्हें देती है। इतने घरों के उदाहरण उसकी आँखों के सामने हैं। एक के बाद एक उसकी जान पहचान के कितने ही घर बहुओं की ससुराल के सदस्यों के प्रति बेरुखी, उदासीनता या बुरे बर्ताव के शिकार हो कर बिखर चुके हैं। नहीं,नहीं,कितने त्याग और तपस्या से उसने अपना यह प्यार की ऊष्मा से सराबोर आशियाना तिनका तिनका संवारा है। अगर कोई बदमिजाज, संकुचित, स्वार्थी मानसिकता वाली लड़की उसके घर आ गई तो क्या होगा? परिणाम की भयावहता से वह सिहर उठी। नहीं, नहीं, वह तम्मा को ही अपनी बहू बनाएगी। उसे अपनी कुललक्ष्मी बनाएगी। किस बात में कम है उसकी तम्मा? शिक्षा,दीक्षा, रंगरूप शील,संस्कार सभी कुछ तो है उसके पास,फिर यह संशय कैसा? और उसी क्षण केतकी ने निर्णय ले लिया कि तम्मा ही उसकी बहू बनेगी।

जैसे विकट आँधी तूफान के बाद आसमान निर्मल,शांत हो जाता है, ठीक उसी प्रकार अब केतकी के अन्तर्मन में इस प्रश्न को लेकर लेशमात्र भी संदेह न रहा, और तम्मा को अपनी पुत्रवधु बनाने का अंतिम निर्णय ले उसका मन एक अनपेक्षित सुकून से भर उठा।

उस दिन शिरीष के घर आने पर केतकी ने इस मुद्दे पर उनसे बात की थी। शिरीष को इस निर्णय में शामिल करने के लिए केतकी को ज्यादा प्रयत्न नहीं करना पड़ा। शिरीष बहुत जल्दी तम्मा को अपनी बहू बनाने के लिए सहमत हो गए। केतकी ने इस संबंध के बारे में मनन से भी फोन पर उसकी राय पूछी थी और थोड़ी ना नुकर के बाद वह भी इस रिश्ते के लिए मान गया, लेकिन उसने केतकी से यह भी कहा था कि “आप तम्मा पर इस रिश्ते के लिए कोई दवाब नहीं डालेंगी। इस शादी के लिए उसकी रजामंदी बहुत जरूरी है। अगर इस रिश्ते के लिए उसके मन में तनिक भी शंका हुई तो यह शादी नहीं होगी।”

इस तरह इस रिश्ते के लिए मनन की भी स्वीकृति पा कर केतकी और शिरीष दोनों ने बहुत सोचविचार कर अगली सुबह चाय पीते वक्त तम्मा के समक्ष मनन से उसके विवाह का प्रस्ताव रखा था।

“तम्मा बेटा, समय आगया है तुम्हारे विवाह के बारे में सोचने का। मनन की भी उम्र हो आई है। अब हमारी भी उम्र दिनों दिन बढ़ती जारही है। हम तुम दोनों का विवाह कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते हैं। बहुत सोच विचार कर हमने निर्णय लिया है कि तुम और मनन विवाह के रिश्ते में बंध कर एक हो जाओ।”

“माँ, आपके और पापा के मुझ पर इतने अहसान हैं, आपने मुझे सड़क से उठा कर अपने घर में पनाह दी, मुझे बेटी का नि:स्वार्थ लाड़ दुलार दिया, माँ मैं आपकी बेटी ही बनी रहना चाहती हूँ। मनन को मैंने हमेशा भाई माना है मैं उससे शादी की सोच भी नहीं सकती। अगर मैंने मनन से विवाह किया तो मेरी जिंदगी का समीकरण एकदम से गड़बड़ा जाएगा। मैं बस आपकी और पापा की बेटी बनी रहना चाहती हूँ, इस जनम में ही नहीं वरन हर जनम में। अपने इस रिश्ते में मुझे कोई जोड़,घटाव या गुणा नहीं चाहिए। इस रिश्ते ने मुझे एक सार्थक अस्तित्व दिया है, अपने कदमों तले ठोस जमीन दी है, और मुझे एक नाम दिया है, एक पहचान दी है। प्लीज़ माँ पापा, मुझसे मेरा मुट्ठी भर आसमान मत छीनिए, मुझे समझने का प्रयत्न करिए।” कहते कहते तम्मा कि बड़ी बड़ी आँखों में आँसू उमड़ आए।

यह देख कर केतकी को तम्मा के मन में चल रहे द्वंद का आभास हो आया, और भरे हृदय से उसने तम्मा को अपने सीने से चिपटाते हुए कहा, “ना बेटी ना,यूं रोते नहीं हैं,बेटी तेरी इच्छा के विरुद्ध मैं कुछ नहीं करूंगी, तू राजी होगी,पूरे मन से ये रिश्ता स्वीकार करेगी तभी यह बात आगे बढ़ेगी। और अगर तू इसके लिए तैयार नहीं हैं तो हम हर्गिज तेरे साथ कोई जबर्दस्ती नहीं करेंगे।” यह सुन कर रोती हुई तम्मा मुसकुरा उठी, और तीन जोड़ी आँखों में नेह प्यार की सुगंध बिखेरते ममत्व के असंख्य फूल खिल उठे।