वक़्त के साथ उसका यह सपना उसका जुनून बन गया। वह अपनी पढ़ाई में कड़ी मेहनत करते हुए निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती जा रही थी, कि तभी उसके जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते रखते कनक हवेली में दुर्दैव ने दस्तक दी और बापूसा की दिल के दौरे में मौत हो गई। इस आघात ने माँ बेटी की कमर तोड़ दी। विपत्ति के उन क्षणों में दोनों एक दूसरे का सहारा बनीं। माँ ने पास पड़ौस के लोगों के कपड़े सीना शुरू कर दिया और उसने पड़ौसियों के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना। दोनों मिलकर गुजारे भर लायक कमा लेतीं। उसकी पढ़ाई भी बदस्तूर जारी थी।
कालचक्र नए सोपान उत्तरोत्तर चढ़ता गया। बारहवीं की परीक्षा बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर उसने अपने कस्बे के निकटतम शहर में होटल मैनेजमेंट के एक संस्थान की प्रवेश परीक्षा दे कर उसे उत्तीर्ण की और बैंक से ऋण लेकर उसमें प्रवेश ले लिया।
देखते देखते उसकी पढ़ाई पूरी हुई और वह माँसा के पास लौट आई। समय आ गया था अपने सपने को साकार करने का, कनक हवेली में रेस्त्रां खोलने का। अब समस्या थी रेस्त्रां के लिए जरूरी साजोसामान खरीदने के लिए पैसों का इंतजाम करने की। बिना स्टडी लोन चुकता किए नया लोन देने के लिए कोई भी तैयार न था कि तभी किस्मत से उन्हीं दिनों राज्य सरकार ने नए उद्यमियों के लिए एक ऋण योजना का सूत्रपात किया जिसके अंतर्गत उसे ख़ासी भाग दौड़ के बाद एक अच्छी ख़ासी धन राशि का लोन मिल गया। हवेली अपनी थी, तनिक खस्ताहाल थी। बस उसमें थोड़ी साज संभाल की आवश्यकता थी।
सो हवेली की समुचित मरम्मत और सजावट करवाने के बाद उसने भगवान का नाम लेकर कनक हवेली में अपना रेस्त्रां शुरू कर दिया।
प्रारम्भ में रेस्त्रां के कार्य क्षेत्र में पारंगत कर्मचारियों को ढूँढना उसके लिए बहुत चुनौती भरा रहा। पहले पहल जो पुरुष कर्मचारी उसके यहाँ नौकरी में आए, उसके एक लड़की होने की वज़ह से उसके निर्देशों को गंभीरता से न लेते। टिपिकल अहंवादी पुरुष मानसिकता के चलते हर बात में अपनी चलाते, जिससे उसे बेहद कोफ़्त होती। पहले पाँच सात माह इस समस्या को लेकर वह बेहद परेशान रही। तभी उसके रेस्त्रां में एक युवती पूजा आई जिसने उस के साथ उस के कालेज में होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की थी। वह एक तलाक़शुदा युवती थी। बेहद हिम्मती थी। उसका विवाह बचपन में ही एक ऐसे लड़के से हुआ जो एक धनाढ्य परिवार का लड़का था। उसके पिता की मृत्यु उसके बचपन में ही हो गई थी।बढ़ती उम्र में माता के समुचित अनुशासनऔर अंकुश के अभाव में वह ज्यादा नहीं पढ़ पाया। युवावस्था की दहलीज़ पर कदम रखते रखते वह एक एक कर बुरी आदतों जैसे जुआ, गांजे का शिकार हो गया। दूसरी ओर पूजा एक खेतिहर पिता की बेटी थी। प्रारम्भ से पढ़ाई में बेहद अच्छी थी। गौने की उम्र आते आते उसने बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली। पहली बार जब वह ससुराल गई, वहां अपने पति के यह रंग ढंग देख कर मानो आसमान से गिरी। उसके पांव तले जमीन ना रही। ससुराल में पैसे की कोई कमी न थी। उसका पति जितना चाहता, माँ से जिद्द जबर्दस्ती कर पैसे ले लेता, और उसे जूए और नशेबाजी में उड़ा देता। सारा सारा दिन घर से बाहर अपने दादानुमा दोस्तों के साथ अड्डेबाजी करता, और देर रात गांजे के नशे में चूर घर पहुंचता। पूजा के लिए उसके पास तनिक भी समय न होता। ऊपर से उसके ऊपर जमाने भर का रौब झाड़ता। दस बारह दिनों में ही पति का यह रवैया देख कर वह समझ गई कि उस जैसे लड़के के साथ ज़िदगी काटना उसके लिए किसी सज़ा से कम न होगी। सो वह ससुराल से पहली बार जो मायके गई तो माता पिता को पति की असलियत बताई, और दोबारा ससुराल जाने के लिए तैयार नहीं हुई। पिता ने जब दामाद के बारे में तहक़ीक़ात की, बेटी की शिकायतों को अक्षरशः सही पाया। अब उनके पास बेटी को ससुराल वापिस न भेजने के अलावा और कोई विकल्प न था। बहुत सोच समझ कर उन्होंने उसके तलाक की अर्जी पारिवारिक कोर्ट में लगा दी। तभी उन्होंने उसके स्कूल के शिक्षकों के मशविरे से उसे पास के शहर के होटल मैनेजमेंट के कालेज की प्रवेश परीक्षा दिलवाई, जिसे उसने पहली बार में ही उत्तीर्ण कर ली और उसके पिता ने उसे उस कालेज में दाखिला दिलवा दिया, यह सोच कर कि वह यह पढ़ाई कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी। पढ़ लिख कर उनके बाद किसी पर आश्रित नहीं रहेगी।
कालेज की पढ़ाई समाप्त होने से पहले ही पूजा का तलाक हो गया। कालांतर में पढ़ाई खत्म कर शुरू में उसने अपने कस्बे में ही एकाध रेस्त्रां में नौकरी की। तभी एक दिन वह अचानक जयति से मिली, और उसके कहने पर वह उसी के रेस्त्रां में नौकरी पर लग गई।
इधर रेस्त्रां के शुरुआती दौर में जयति को कदम कदम पर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। एक समस्या खत्म होती नहीं कि दूसरी मुंह बाए सामने आ खड़ी होती। उसने रेस्त्रां में खाने का सामान लाने के लिए कस्बे के ही एक बेरोजगार युवक को रखा, लेकिन वह ईमानदार नहीं निकला। रेस्त्रां के लिए खरीदे गए सामान की खरीद फ़रोख्त में बेईमानी करता। जयति उसे किसी भी सामान की निश्चित मात्रा खरीद कर लाने के लिए कहती, किन्तु वह उसकी बताई मात्रा से कम सामान लाता। दुकानदार की मिलीभगत से उस सामान का कच्चा बिल पूरी मात्रा का लाता। इस तरह सामान जल्दी खत्म हो जाता, और जयति पता ही नहीं लगा पाती कि कहां क्या ऊंच नीच हुई। एकाध बार उसने यह गड़बड़ी पकड़ी भी लेकिन उस युवक के खिलाफ वह कुछ नहीं कर पाई। वह उलटा उसे आंखें दिखा कर नौकरी छोड़ कर चला गया। उसके बाद उसने एक और युवक को नौकरी पर रखा। कुछ दिनों में उसने अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से उसका भरोसा जीत लिया और एक दिन कुछ ज्यादा सामान लाने के लिए जयति के दिये गए पच्चीस हज़ार रुपये लेकर फरार हो गया। फिर कभी लौट कर नहीं आया। इस तरह उस युवक के बाद जयति ने कुछ और लोगों को अपने रेस्त्रां में रखा, लेकिन कोई भी उसकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा।
कुछ पुरुष कर्मचारियों के साथ ऐसे कटु अनुभवों के बाद जयति ने अपने स्टाफ़ में महिला कर्मचारियों को अधिक संख्या में रखना शुरू कर दिया। जयति ने अपने आसपास की अनेक बेरोजगार महिलाओं को अपने रेस्त्रां में खाना बनाने, सर्व करने और कुछ अन्य कार्यों का प्रशिक्षण दिया। उसका यह कदम बेहद सही साबित हुआ। समय के साथ स्थिति सुधरती गई, और उसके रेस्त्रां में कुछ ईमानदार महिला कर्मचारियों के साथ नेक पुरुष कर्मचारी भी टिकते गए। धीरे धीरे उनलोगों के सहयोग से उसकी दिक्कतें कम होती गईं। सर्वोपरि पूजा के रेस्त्रां में आने के बाद उसे बहुत सहारा मिला। समय के साथ पूजा बेहद समझदार, नेकनीयत और विश्वसनीय साबित हुई। जल्दी ही उसका अच्छा स्वाभाव और बढ़िया काम देख कर जयति ने उसे रेस्त्रां का मैनेजर बना दिया। कुछ ही दिनों में उसने रेस्त्रां की ज़िम्मेदारी बहुत सक्षमता से अपने कंधों पर ओढ़ ली, और जयति का दाहिना हाथ बन गई।
किसी भी रेस्तरां, होटेल के पनपने और लोकप्रियता प्राप्त करने की मुख्य वजहें होती हैं, उसका भोजन, उसका प्रशासन और उसकी सेवाएं। भोजन के क्षेत्र में जयति के रेस्त्रां की कोई सानी न थी। जयति एवं उसकी माँ के हाथों में जादू था। माँ स्वादिष्ट, पारंपरिक खाना बनाने में सिद्धहस्त थीं। जयति को विभिन्न राज्यों के पकवान और मल्टी क्युज़ीन बनाने में महारथ हासिल था। दोनों माँ बेटी अपने बावर्चियों से अपने दिशानिर्देशन में इतने स्वादिष्ट व्यंजन बनवातीं, कि जो एक बार वहाँ का खाना खा कर जाता, दोबारा लौट कर जरूर आता।
जयति एक कुशल ऐडमिनिस्ट्रेटर भी थी। साथ ही पूजा भी एक बेहद अच्छी प्रशासक थी। दोनों की उत्कृष्ट प्रशासकीय योग्यता ने उनके रेस्त्रां की आशातीश प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ ही समय में उन दोनों के नेतृत्व में अपने गिने चुने भरोसेमंद महिला और पुरुष कर्मचारियों की टीम के दम पर रेस्त्रां के बेहतरीन प्रशासन, सर्विस और उसके व्यंजनों के चटखारेदार ज़ायके के चलते उनका रेस्त्रां अच्छा खासा चल निकला।
साल बीतते बीतते उसने इन्टरनेट पर रेस्त्रां की साइट बनवा ली। उसके रेस्त्रां में जो भी एक बार खा कर जाता, उसके ज़ायकेदार पकवानों और शानदार सर्विस का कायल हो कर जाता। रेस्त्रां से जाने वाले संतुष्ट ग्राहकों से वह व्यक्तिगत रूप से अपनी साइट पर ईमानदारी से रिव्यूज़ देने के लिए अनुरोध करती और उसके रेस्त्रां की सेवाओं से संतुष्ट लगभग सभी ग्राहक नैट पर बेहतरीन रिव्यूज़ देते। उसका रेस्त्रां अब कस्बे के आला रेस्त्राओं में शुमार हो चला था और वह निरंतर अपनी विजय यात्रा पर उत्तरोत्तर बढ़ती गई।
तभी कुछ ऐसा घटा जिसने उसकी पुरसुकून जिंदगी में हलचल मचा दी।