वह अब पच्चीस वर्ष की होने आई। इतनी सी उम्र में उसने बहुत कुछ हासिल कर लिया था, धन, दौलत, नाम और प्रतिष्ठा। वह अपनी जिंदगी से बेहद तृप्त थी। रेस्त्रां उसकी जिंदगी थी, रेस्त्रां के आगे उसे कुछ न सूझता। रेस्त्रां की सेवाओं को बेहतर से बेहतर बनाना उसका एकमात्र मकसद बन कर रह गया लेकिन जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ती जा रही थी, उसकी माँ उठते बैठते दिन रात उससे कहते न थकती, “बेटा अब तू पच्चीस बरस की होने आई, शादी के बारे में भी सोच। अब शादी में और देर करना ठीक नहीं।”
वह रोज़ाना ही अपनी बिरादरी के किसी न किसी लड़के के बारे में उसे बताती, लेकिन जयति उनकी एक ना सुनती। जब भी माँ उसे अपने समाज के किसी लड़के के विषय में बताती, वह उनसे कहती, “माँ, अभी मेरी शादी की कतई इच्छा नहीं है। मैं यह नहीं कह रही कि मैं शादी नहीं करूंगी, आप निश्चिंत रहो, मैं शादी जरूर करूंगी, लेकिन अभी नहीं। अभी मेरा रेस्त्रां मेरी पहली प्राथमिकता है।” उसकी इन बातों पर माँ मन मसोस कर रह जाती।
तभी जयति की जिंदगी में हलचल मचाते हुए विक्रम सिंह का प्रवेश हुआ। विक्रम सिंह कस्बे के जानेमाने खानदानी दौलतमंद परिवार का इकलौता चिराग था। एक दिन विक्रम सिंह उसके अपने कुछ दोस्तों के साथ उसके रेस्त्रां में खाना खाने पहुंचा। उसकी नज़रें वहां मुस्तैदी से दौड़भाग करती हुई जयति पर पड़ीं, और वह उस पर पहली नज़र में लट्टू हो गया।
उसके माता पिता पिछले कुछ समय से उसपर विवाह करने के लिए दवाब बना रहे थे। उन्होंने उसे अनगिनत लड़कियों के फोटो दिखाये, लेकिन उसे अभी तक कोई लड़की जंची नहीं।
उस दिन अपूर्व आत्मविश्वास से दमकती जयति के सादगी भरे गरिमावान सौंदर्य ने उसके हृदय में उसे हमेशा के लिए अपना बनाने की ललक शिद्दत से जगा दी, और घर जा कर उसने अपनी माँ से कहा, “मुझे एक लड़की पसंद आ गई है, आप उनके घर मेरा रिश्ता ले कर जाओ। मैंने अच्छी तरह से सोच लिया है, मैं शादी करूंगा तो उसी लड़की से। मैंने अपने दोस्तों से उसकी पूरी छानबीन करवा ली है। होटल मैनेजमेंट करी हुई है लड़की। हर तरह से बढ़िया है।”
बेटे को कोई तो लड़की पसंद आई, यह सोच कर विक्रम सिंह के माता पिता बेहद मगन मन जयति की माँ से मिलने उन की हवेली पहुंचे। विक्रम सिंह की माँ ने जयति की माँ को बेटे की फोटो दिखाते हुए कहा, “बहनजी, यह मेरा बेटा है, विक्रम सिंह। बी. ए. पास है। हमारी तेल मिलों का पुश्तैनी कारोबार है। बेटा ही इन मिलों कों संभालता है। हम बड़ी आस लेकर अपने बेटे के लिए आपकी बेटी का हाथ मांगने आए हैं।”
“बहनजी, हमारे अहोभाग्य कि आप खुद चल कर आए हैं हमारे घर। आप देख ही रहे हैं, मेरी बेटी यहाँ हमारी हवेली में यह रेस्त्रां चलाती है। तो जी मैं अपने आप इस बारे में कोई निर्णय नहीं ले सकती। बेटी से पूछ कर उसकी रजामंदी से ही मैं उसका संबंध तय करूंगी।”
“जी, वो तो ठीक है, हम जमींदार परिवार से हैं। पचास एकड़ जमीन और पाँच तेलमिलों का इकलौता वारिस है मेरा बेटा,मुझे नहीं लगता कि इसके बाद आपको दोनों के संबंध के बारे में सोचने का कोई मसला होना चाहिए।”
“नहीं नहीं बहनजी, आप लड़के का फोटो और बायोडेटा छोड़ जाइये, मैं लड़की से बात करे बिना यह ब्याह तय करने की स्थिति में बिलकुल नहीं हूं।”
जयति की माँ के इस दो टूक जवाब से विक्रम सिंह की माँ अवाक रह गईं। वह सोच भी नहीं सकती थी कि अथाह धन दौलत के वारिस उनके खासे स्मार्ट बेटे के साथ रिश्ते के लिए किसी परिवार को सोचने के लिए समय चाहिए होगा। सो वह तनिक रुष्ट हो कर भुनभुनाती हुई अपने घर वापिस लौटीं और बेटे को सारी बातें कह सुनाईं।
उधर जयति ने जब माँ से इस संबंध के बारे में सुना, उसने बिना कुछ अधिक सोचे समझे फौरन ना कर दिया, “माँ, ये लोग दोबारा आयें तो आप इन्हें साफ़ साफ़ ना कर देना। इतने मालदार घर में मैं उनके हाथों की कठपुतली बन कर रह जाऊंगी। मुझे अभी अपनी हवेली में होटेल भी खोलना है। अपने बहुत सारे अरमान पूरे करने हैं। अभी दोतीन सालों तक शादी नहीं करनी मुझे किसी भी हालत में और हां, एक बात और, मैं जब भी शादी करूंगी, अपने चुने हुए लड़के से। ये लोग इतने रईस हैं, क्या मुझे रेस्त्रां चलाने की आज़ादी देंगे? कभी नहीं। मैं उसी लड़के से शादी करूंगी, जो मुझे मेरे सपनों के साथ पसंद करेगा, और जो मेरी इच्छाओं की कद्र करेगा।”
“पर बेटा, एक बार लड़के से मिल तो ले, क्या पता वह बिलकुल वैसा ही हो जैसा तूने सोच रखा है।”
“नहीं माँ वह वैसा हो ही नहीं सकता। देखा नहीं, उसकी माँ कितनी ठसक से आपको बता रहीं थीं, पचास एकड़ जमीन और पांच तेल मिलों का इकलौता वारिस है मेरा बेटा। इतना दौलतमंद बंदा क्या तो गठानेगा मुझे, और क्या मेरी ख़्वाहिशों को? सौ रोक टोक लगाएगा मुझ पर। नहीं,नहीं, मुझे अभी इस फंदेबाजी में फंसना ही नहीं है”
“पर बेटा, मैं बिना किसी बात के कैसे मना करूं उन्हें,कोई वज़ह भी तो हो उन्हें इंकार करने की। लड़के की माँ खुद चल कर हमारे घर आई। यूं घर आए रिश्ते को ठुकराना सही नहीं बेटा।”
“माँ, मुझे कोई वास्ता नहीं रखना इन पैसे वालों से, बस कह दिया मैंने। मैं तो चली, अब आप जानो आपका काम जाने,” यह कह कर जयति रेस्त्रां की तरफ चल दी और माँ सोच में पड़ गई, कैसे समझाए अपनी इस मनमौजी बेटी को।
उधर माँ को खाली हाथ आया देख विक्रम के क्रोध का कोई अंत नहीं था। एक रेस्त्रां चलाने वाली अदनी सी लड़की ने उसजैसे खानदानी रईसजादे का रिश्ता बिना किसी कारण के ठुकरा दिया, यह बात उसके गले से नहीं उतर रही थी।
‘अब तो मुझे ही कुछ करना पड़ेगा,’ यह सोच विक्रम एक बार फिर से एक शानदार फूलों के बुके के साथ जयति के रेस्त्रां पहुंचा और एक वेटर के हाथों उसे अपने नाम के कार्ड के साथ भिजवा दिया।
विक्रम के भेजे गए गुलदस्ते को देख कर जयती के गुस्से का कोई ओर छोर नहीं था। वह भुनभुनाती हुई उसी वेटर के साथ विक्रम की टेबल तक आई, और बोली, “हॅलो मिस्टर विक्रम, अभी फिलहाल दो तीन वर्षों तक मेरा शादी करने का कोई इरादा नहीं। तो बेहतर यही होगा कि आप प्लीज़ मुझ पर अपना ध्यान जाया ना करें, और किसी और लड़की की तलाश करें”।
“जयतिजी, लड़की तो मुझे मिल गई है, और मेरे सामने खड़ी है।”
यह सुन कर अदम्य गुस्से से जयती के तन बदन में आग लग गई, और उसने तनिक तेज आवाज़ में विक्रम से कहा, “मिस्टर विक्रम, कोई जबर्दस्ती है क्या? यह आपकी रियासत नहीं कि आपका कानून चलेगा।”
“अजी मैडम, मैंने कब कहा कि यह मेरी रियासत है। जोरजबर्दस्ती की तो कोई बात ही नहीं है। पहले आप मेरे साथ यहाँ आकर तो बैठिए, तनिक गपशप करते हैं, कुछ आपकी सुनते हैं, कुछ अपनी सुनाते हैं।”
“मिस्टर विक्रम, आप अपनी हद से आगे बढ़ रहे हैं। मुझे न तो कुछ कहना है, न ही आपकी सुननी है। आप तो खामख़्वाह मेरे गले पड़ रहे हैं।”
“अरे गले कौन बेवकूफ पड़ रहा है? हम तो आपको अपनी धर्मपत्नी बनाने की हसरत रखते हैं, मिस जयति। यह कोई गुनाह तो नहीं।”
जयति की कुछ समझ में नहीं आरहा था कि वह इस विक्रम से कैसे पीछा छुड़ाये। उस दिन के बाद से वह एक बड़े से बेशकीमती गुलदस्ते के साथ रोज़ शाम कों रेस्त्रां आता और किसी वेटर के हाथों उसे भिजवा देता।