हिमानी अपनी बैंक के कांफ्रेंस हॉल में बैंक के अधिकारियों के मध्य बैठी हुई थी। आज का समारोह बैंक के उन अफ़सरों को सम्मानित करने के लिए आयोजित किया गया था, जिन्होंने बैंक के दिए हुए टार्गेट पूरे कर लिए थे। तभी चीफ़ मैनेजर साहब उठ खड़े हुए और उन्होंने इस सम्मान समारोह की कार्यवाही का यह कहते हुए आगाज़ किया, "आज का यह समारोह हमारे कुछ एम्पलॉईज़ को बैंक के हालिया कॉन्टेस्ट में बेहतरीन परफॉर्मेंस के लिए पुरस्कृत करने के लिए आयोजित किया गया है। इसमें टॉप पर हैं श्रीमती हिमानी वर्मा, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत से अपने हार्ड वर्क और अपने काम के प्रति अपने कमिटमेंट की वजह से अपना एक खास मुकाम बनाया है। इस बार उन्होंने अपने सभी टारगेट्स बखूबी पूरे करके अपने लिए सपरिवार मौरीशस की टिकट्स जीती हैं। शी इज़ द स्टार ऑफ आवर बैंक।"
बैंक के चीफ मैनेजर के मुंह से अपनी प्रशंसा सुनकर हिमानी गदगद हो उठी। आज उसके जीवन की महत्वाकांक्षा पूरी हुई। चिरप्रतीक्षित ऐवार्ड पाकर सुबह से अन्तर्मन में छाई उदासी की गहन छाया हल्की हुई थी। तभी उसकी नजर हॉल में सबसे आगे की कतार में बैठे हुए अपने पति सम्यक की नज़रों से मिली और अनायास उस सुबह उससे कहे गए उनके ज़हर बुझे अल्फाज़ उसके कानों में गूंज उठे, "अपनी नौकरी में चाहे तुम ने सभी टार्गेट पूरे कर लिए हों, लेकिन मेरी नज़रों में जिंदगी के इम्तिहान में तुम फ़ेल हो फ़ेल। जो औरत अपनी घर गृहस्थी बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी ठीक से न निभा सके, वह किसी काम की नहीं। उसे तो डूब कर मर जाना चाहिए... डूब कर मर जाना चाहिए... यू आर द स्टार ऑफ आवर बैंक........ पति और चीफ मैनेजर के कहे हुए लफ़्ज़ गडमगड हो उठे और इसी के साथ उसके दिल की धड़कन तेज हो आई। उसके हाथ पैर ठंडे हो आए और वह पसीना पसीना हो उठी। तभी फिर से उसकी नजर अपने पति पर पड़ी। एक क्षण को उनकी नजरें मिली उसे देखकर उनके चेहरे पर एक व्यंगात्मक मुस्कुराहट और हिकारत का भाव स्पष्ट उतर आया, जिसे देखकर उसका अंतर्मन धू धू कर सुलग उठा।
तभी पुरस्कार देने के लिए उसका नाम पुकारा गया। उसकी प्रशंसा में कसीदे पढ़े गए लेकिन यह सब भी उसके मन का दाह मिटा पाने में असफल रहा ।
हिमानी वर्मा बैंक की एक वरिष्ठ उद्यमी अधिकारी जिसकी कर्मशीलता और मेहनती स्वभाव की तूती उसके कार्यक्षेत्र में बोलती थी, आज अपने पति की निगाहों में जिंदगी की दौड़ में पूरी तरह हाशिये पर आ चुकी थी।
सम्मान समारोह की समाप्ति पर वह कॉन्फ्रेंस हॉल से निकलकर अपनी गाड़ी की ओर बढ़ी और उस में बैठ गई। गाड़ी के रफ्तार पकड़ने के साथ-साथ उसका मन पंछी भी पुरानी यादों के मुक्त आकाश में उड़ने लगा।
माता-पिता ने एम. ए. पास करते ही उसका विवाह सम्यक से कर दिया। शादी के बाद वह जब भी अपने इर्द-गिर्द नौकरी पेशा महिलाओं का ठसका और रुआब देखती, मन में घर गृहस्थी की चहारदीवारी से बाहर निकलकर नौकरी करने जीवन में कुछ सार्थक कर पाने की तमन्ना अंगड़ाई लेती।
उसे आज भी याद है, दोनों बच्चों के तनिक समझदार होने पर उसने सम्यक से बैंक का कॉम्प्टीशन देने की इच्छा जताई थी, जिसे उस ने बिना नानुकर के मान लिया था।
उसने दिन रात एक कर प्रतियोगी परीक्षा दी और पहली ही बार में उसे सफलता मिल गई। बस तभी से मानो उसके पंख लग गए। एक के बाद एक विभागीय परीक्षा देते हुए वह बहुत जल्दी बैंक ऑफ़ीसर बन गई। उन दिनों उस पर प्रोमोशन पाने का मानों जुनून सवार हो गया था। घर गृहस्थी और बच्चों में उसका मन न रमता। दोनों बेटे सम्यक की वृद्धा मां की देखरेख में पलने लगे। पति एक महा संतोषी जीव थे। अपनी बैंक की नौकरी से महासंतुष्ट। उसकी घर गृहस्थी पूरी तरह से उन्होंने और उनकी मां ने मिलकर संभाली हुई थी। हिमानी की डिमांडिंग नौकरी के बावजूद उसकी घर गृहस्थी सासूमां और पति के सहयोग के कारण ठीक-ठाक ही चलती रही। सम्यक नौकरी के बाद बचे समय में दोनों बेटों को पढ़ाई में मदद करते। दोनों ठीक-ठाक नंबरों से पास भी हो जाते ।
इधर वक्त के साथ दोनों पति-पत्नी की बैंक की नौकरी की जिम्मेदारियां बढ़ने लगी। बैंक द्वारा दिए गए टार्गेट पूरे करने के चक्कर में दोनों हिमानी और सम्यक को घर लौटने में आए दिन देर हो जाती। उन्हीं दिनों सम्यक की मां की मृत्यु हो गई। हिमानी अब बैंक मैनेजर बन गई थी। तो नौ बजे से पहले कभी घर ना लौटती। अलबत्ता बैंक द्वारा घोषित हर कॉन्टेस्ट में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर हर पुरस्कार जीतती।
सासूमां के देहांत के बाद अब उसकी गृहस्थी नौकरों और आयाओं के भरोसे चलने लगी थी। घर में पैसों की कमी न रही थी। शौक मौज़ की हर चीज घर में थी। किसी चीज का अभाव था तो वह थी मानसिक शांति। दोनों पति-पत्नी की अति व्यस्तता से बच्चों की पढ़ाई पटरी से नीचे उतरने लगी। यह सब देखकर सम्यक हिमानी से कहता, "अब तुमने अपनी नौकरी में बहुत कुछ हासिल कर लिया। ऊंची पोस्ट पर पहुंच गई। क्या जरूरी है कि हर टार्गेट पूरा किया ही जाए? यह टार्गेट पूरा करने के चक्कर में तुम बच्चों पर ध्यान नहीं दे पा रही। दोनों क्लास में पिछड़ते जा रहे हैं। शाम को दोनों रोजाना मुझे घर से बाहर अपने आवारा दोस्तों के साथ अड्डेबाज़ी करते हुए मिलते हैं। नौकरी के साथ-साथ घर बच्चों की तरफ भी तनिक ध्यान दो।"
पर हिमानी तो इस विषय में जैसे कुछ सुनने को तैयार न थी। सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर चढ़ने के जुनून में बच्चों के प्रति अपने उत्तरदायित्व का उसे तनिक भी एहसास न था। वह यह कह कर मन को समझा लेती कि बड़े होने पर बेटे खुद ब खुद पढ़ने लगेंगे।
उनका बड़ा बेटा बारहवीं में आ गया था। पढ़ने में शुरू से कमजोर था। आज बोर्ड की परीक्षा का परिणाम आया था। वह उसमें फेल हो गया था।
सम्यक हिमानी से बेहद खफा था। उसने हिमानी को बेटे के फेल होने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया। उसके घर गृहस्थी की तरफ ध्यान न देने की बात को लेकर उसे व्यंग बाणों से छलनी किया। दोनों में जम कर तकरार हुई।
तभी गाड़ी के रुकते ही उसकी सोच को भी ब्रेक लगा था। उसका घर आ गया। वह गाड़ी से उतरी ही थी कि अपने आलीशान घर के सामने पुलिस को देख कर चौक गई। धड़कते दिल से उसने पुलिस अफसर से पूछा, "क्या हुआ ऑफिसर? क्या बात है?"
"क्या शरद वर्मा यहीं रहता है? उसके पिता को बुलाइए।"
"जी बिल्कुल यह शरद वर्मा का ही घर है, लेकिन बात क्या है ऑफ़ीसर?"
"जी आपका बेटा मालवीय नगर के हुक्का बार में ड्रग्स लेते पकड़ा गया है।"
"क्या ड्रग्स के साथ? नहीं ऑफ़ीसर, आपको जरूर कोई गलतफहमी हुई है। मेरा बेटा और ड्रग, नहीं नहीं यह नहीं हो सकता।"
हिमानी के पांव तले जमीन ना रही। उसे लगा, उसके हाथ में थमी फॉरेन ट्रिप की टिकट, ट्रॉफी और शॉल उसे मुंह चिढ़ा रही थीं।
दिया तले अंधेरा ही तो था। आज उसे एहसास हो रहा था, अपने कार्य क्षेत्र में अपूर्व नाम, सम्मान, यश प्रतिष्ठा और जिंदगी की हर नियामत से भरपूर जिंदगी की असली आज़माइश में तो वह वाकई में फ़ेल हो गई थी।