“देखोजी, सराब अच्छी चीज ना होवे है। होस में रहो तो अपने घर में किस चीज की कमी है? ईश्वर की कृपा से हमन दोनों की कमाई खूब बढ़िया चल निकली है। एक नंबर वाली ने कही है, अगले महीने से वो मेरे हज़ार रुपये बढ़ा देवेगी। सो मैं पूरे दस हज़ार ले आया करूंगी। तुम भी मिस्त्रीगिरी से अट्ठारह बीस हज़ार कमा ही लो हो। तीस हज़ार कोई कम ना होवे हैं। भगवान ने हमें दो बेटियों के बाद एक बेटा भी दे दीनो है। तीनों पराइवेट स्कूल में पढ़ें हैं। और ज़िंदगानी में का चाहिए जी”?
“चुप चुप कर बावली, नज़र लगावेगी का? मेरी अम्मा कहा करतीं, अपने सुख ना गिना करते। जलन वालों की बुरी नज़र लग जावे है”।
“एक बात कहूँ जी, तुम जब ये मरी दारू पी कर आओ हो, सारी सुख सांती को सत्यानाश हो जावे है। सच्ची जी, सराब पी कर तुम तुम ना रहो हो। नसे में इत्ता उधम करो हो कि मेरी और बच्चन की बुरी गत बन जावे है। करवा चौथ वाले दिन तो तुमने मोय बेल्ट से इत्तों मारो। अबई तक हाड़ पिरा रहे। क्यों ये जहर पियो हो जी? का मिलत है तुम्हें ये कमबख्त नसा करके”।
“बस बस, अब जियादा बात ना बना। गज़ भर की जबान हो गई है तेरी आजकल। दारू मैं अपने पैसों से पीऊँ, तोय का मतलब”? तू ना समझेगी, दारू पीकर का मिलत है। चल सो जा, सुबह तोय काम पे भी जानो है”।
“ना जी, ये नासपीटा नसा करके तुमन ने मेरी साल भर की करवा चौथ बिगाड़ दीनी। अब दिवाली ना बिगाड़ने दूँगी, मैं अभी से कहे देती हूँ हाँ। जो दिवाली वाले दिन तुम चढ़ा कर आए तो तुम्हारी सौगंध तुम्हारी सकल ना देखूँगी जिंदगी भर। सच्ची कह रही हूँ, बच्चन का मुंह देखने को तरसा दूँगी तुम्हें”।
करवा चौथ वाले दिन उसने रमुआ की लंबी उम्र के लिए निराहारी व्रत रखा था। सारे दिन पानी तक की एक बूंद गले से नीचे नहीं उतारी, लेकिन रात को वह नशे की झौंक में उससे बेमतलब खूब लड़ा। बेल्ट से उसकी पिटाई कर दी। सारे दिन की भूखी प्यासी वह कलप कर रह गई। बस तभी से भागो के मन में बहुत बेचैनी थी। दिवाली को तीन दिन रह गए थे। हर घड़ी उसके मन में अशांति की आग धू धू कर जलती रहती। वह बस यही सोचती रहती, जो रमुआ को दारू की लत ना होती तो वह कित्ती किस्मत वाली होती, लेकिन इस सराब ने उसकी हँसती खेलती ज़िंदगी बर्बाद कर के रख दीनी थी। रमुआ हर दूसरे दिन नशे में टुन्न हो कर आता। नशे में वह जानवर बन जाता। उससे और बच्चों से गाली गलौज करता और पीटता। उसकी बेमतलब की फंदेबाजी देख कर घर भर में उदासी का मनहूस साया पसरा रहता। अब तो इसकी वजह से बच्चे भी मुरझा से गए थे। उसके घर में घुसते ही उसके पास दौड़े चले आते और उसका पल्लू थामे थामे फिरते। वह सोच ना पाती, इस आफत से कैसे पार पाये वह।
देखते देखते दिवाली का दिन आ पहुंचा। रमुआ उस दिन सुबह सवेरे उसके लाये नए निकोरे कपड़े पहन कर निकल गया। वह अपने काम पर।
जाते जाते उसने रमुआ को याद दिलाया, “ओजी, साल भर का त्योहार है, आज पीकर मत अइय्यो। नहीं तो बच्चन की दिवाली चौपट हो जावेगी। आती वक़्त मिठाई और पटाखे भी लेते अइय्यो। बच्चे बड़ी बेसबरी से तुम्हारी राह तकेंगे।
सारा दिन वह इस खौफ़ के मकड़जाल में फंसी फड़फड़ाती रही, “आज के दिन भी नसा करके करवाचौथ जैसा तांडव ना मचा दे कहीं वह”।
दिवाली की सुबह अपने आठ दस घरों में बर्तन और झाड़ू पोंछे का काम निबटा हाथ में कुछ घरों से लिए हज़ार रुपयों के साथ वह हंसी खुशी घर पहुंची। आज सब घरों में काम निबटाते निबटते उसे तीन बजने आए। घर पर रमुआ का कोई अता पता नहीं था।
उसने फुर्ती से घर का काम निबटाया। मन में आस की जोत टिमटिमा रही थी, शायद आज रमुआ पी कर नहीं आए। उसने बच्चों को नहला धुला नए कपड़े पहनाए। खुद भी अपनी एक मालकिन की दी गई एक अच्छी सी साड़ी पहनी। बिवाई फटे पैरों पर क्रीम चुपड़ उनपर आलता लगाया। हाथ भर भर चूड़ियाँ पहनीं, कानों में बड़े बड़े झुमके। बिंदी, सिंदूर, काजल, लिपस्टिक से श्रुंगार किया। यह सब करते कराते शाम उतर आई, लेकिन रमुआ अभी तक नहीं लौटा।
जैसे जैसे रात गहराती जा रही थी, उसके मन की दहशत राक्षस बन उसे निगलने लगी। वह सोच रही थी, होशोहवास में होता तो जरूर शाम पड़े तक घर आजाता। जरूर आज भी अपने दोस्तों की चांडाल चौकड़ी के साथ दारूबाजी में अटक गया होगा। मन ही मन उसने लक्ष्मी मैया से चिरौरी की, “हे लछमी मैया, आज रमुआ को सदबुद्धि देना, जो वह आज सराब को हाथ ना लगाए।बस मेरी ये अरदास सुनलो। मैं पूरे एक सौ एक रुपये का परसाद चढ़ाऊँगी”।
रमुआ की बाट देखते देखते रात के सात बजने आए। उसकी कोई खबर नहीं थी। बच्चे हलकान हो आए। वह बस उन्हें दिलासा देती रही, “बस थोड़ी देर में पापा मिठाई और पटाखे लेकर आएंगे। थोड़ी देर और”।
थक हार कर उसने आठ बजे अपनी एक पड़ोसन के मोबाइल से रमुआ को फोन लगाया, लेकिन उधर से उसकी नशे में बहकती आवाज़ सुन उसके हाथ पैर ठंडे हो आए।
“चलो बच्चों, पापा थोड़ी देर से आएंगे। चलो बाज़ार चलते हैं, तुम्हारे पटाखे मिठाई लाने”।
भागो ने बच्चों को खूब सारे पटाखे दिलवाए। उनके लिए उनकी मनचाही मिठाइयाँ खरीदीं। लक्ष्मीजी, गणेशजी की मूर्तियाँ खरीदीं। फूलमालाएँ खरीदीं। पूरे हजार रुपये खर्च कर दिये उसने यह सब खरीदने में।
घर आकर उसने बच्चों के साथ लक्ष्मी पूजन किया। फिर बच्चों को जीभर मिठाई खिला कर उनके साथ पटाखे जलाने लगी।
भागो बच्चों के साथ ऊपरी मन से हंस बोल रही थी, लेकिन भीतर ही भीतर उसका हृदय जार जार रो रहा था। साल भर के त्योहार पर रमुआ उसके साथ ना था, यह बात उसे खाये जा रही थी।
अमावस्या की काली रात गहराती गई। दिये बुझ गए। भागो के सूने मन का शोर बढ़ता ही गया। किसी तरह रात का खाना निबटा बच्चों को सुला वह अपनी खाट पर पड़ गई। उसका दिल सिसक रहा था। रमुआ अभी तक नहीं लौटा था। अपनी इस आधी अधूरी ज़िंदगानी के बारे में सोचते सोचते कब उसकी आँख लग गई, उसे पता ना चला।
वह एक मीठा सपना देख रही थी। रमुआ उसके लाए नए निकोरे कपड़ों में उसके साथ घर पर था। बेटे को गोद में लिए उसके पीछे डोलते हुए वह पटाखे, फुलझड़ियाँ जला रहा था। मगन मन हँसती चहकती वह भी उनके साथ फुलझड़ी जला रही थी।
कि तभी वह हड़बड़ा कर उठी। कोई उसकी खोली का टीन का दरवाजा धड़ धड़ पीट रहा था। उसका सुंदर सपना टूट गया। नशे में धुत्त रमुआ गरियाते हुए दरवाजा खोलने के लिए चिल्ला रहा था। अंट शंट बक रहा था।
भागो ने नन्हें बेटे को अपने से कस कर चिपटा लिया और अपनी सारी हिम्मत जुटा चिल्लाई, “आज ये दरवज्जा ना खुलेगा। रात भी अपने यार दोस्तों के साथ काट लेता। मैंने साल भर का त्योहार अकेले मना लिया, अब ज़िंदगानी भी काट लूँगी, लेकिन तेरी ये रार और ना सहूँगी”........कहते कहते वह फफक कर रो पड़ी पर अगले ही क्षण उसने अपने बहते आंसुओं को पोंछा और करवट बदल कर सोने की कोशिश करने लगी।