“डाक्टर शर्मा, मैं तो आज ही कहीं से अपने घर एक डॉग लाने वाला हूँ। देखिये, बेड नंबर 7 वाली पेशेंट अनामिकाजी के पैट ने किस खूबी से उनके अकेले बंद घर में गिर कर अनकांशस होने पर खिड़की के पास भौंक भौंक कर पड़ोसियों को बुलाया। उसकी आवाज सुनकर ही वे ही दरवाजा तोड़ कर उनके घर में घुसे और समय पर उन्हें अस्पताल पहुंचा कर उनकी जान बचाई।”
“बिलकुल डाक्टर दीक्षित, अपने कोख जाए बेटे तक ने बस दो दिन रह कर माँ की देखभाल की। और मां के होश में आते ही उन से मुंह मोड़ अपने शहर वापिस चला गया। कह रहा था, नई नई नौकरी है, छुट्टी नहीं मिलेगी।”
“अजी, सब नाटक है। खून सफेद हो गया है आजकल बच्चों का। माँ जैसे रिश्ते की भी कदर नहीं रही है आज के समय में। और पैट को देखिये, जब से लेडी गिरी है ठीक से भरपेट खाना तक नहीं खाया है उसने एक दिन भी। बस अपनी मालकिन के पास बैठा बैठा आँसू बहाते हुए उनका हाथ चाट रहा है अभी तक।”
“हाँ मैंने भी उसे कुछ खाते पीते नहीं देखा। मैं कल उसके लिए डॉग फूड लाया था। वह भी सिर्फ सूंघ कर छोड़ दिया उसने। समझदार तो इतना है, एंबुलेंस में लेडी को अस्पताल लाते वक़्त तक जरा नहीं भोंका। उफ, वाकई में डॉग्स बेहद समझदार होते हैं। वफादारी निभाना तो कोई इनसे सीखे।”
उधर सात नंबर बेड की पेशेंट अनामिकाजी चैतन्य होने के बाद से एक गंभीर अंतर्द्वंद झेल रही थीं। वह सोच में डूबी हुई थीं, “डफ़ी नहीं होता तो वह आज इस दुनिया से कूच कर चुकी होतीं। उफ, यह एहसास अपने आप में कितना खौफनाक था। और वह सिहर उठी थीं। गिरने के बाद से वह निरंतर उनके निकट बना हुआ था। और निपट बेहोशी की हालत में भी उस की चिर परिचित गंध और स्पर्श ने उनकी चेतना जीवंत रखी थी। और उन्हें गहरी अचेतावस्था के अंधे कूंए में डूबने नहीं दिया था। और एक ओर उसका इकलौता बेटा है। होश में आने के बाद बस एक दिन रहा उनके पास। और उन्हें घर पहुंचा वापिस अपनी पत्नी के पास दूसरे शहर चला गया। यह भी न सोचा की वृदधा माँ अकेली पड़ौसियों और नौकरों के भरोसे कैसे दिन काटेगी?
बेटे ने सिर्फ एक बार महज दुनिया को दिखाने की गर्ज से और खानापूर्ति के लिए उनसे अपने साथ अपने घर चलने के लिए कहा था। और उनके एक बार मना करने पर वह चुपचाप वापिस चला गया था।
माना कि बेटाबहू उनसे बेहद नाराज थे। वह बेटा जिसकी जान कभी उनमें बसा करती थी, वही अब पत्नी के आने पर उनसे सीधे मुंह बात तक नहीं करता। उनके और बेटे बहू के बीच बेटे की शादी से ही कुछ मुद्दों को लेकर गंभीर मनमुटाव रहा है। लेकिन इसके चलते माँ से सारे रिश्ते तोड़ देना, क्या यह सही है?
वह स्वयं मानती है, इस समस्त प्रकरण में उनकी भी गलती रही है। बेटे ने उनकी मर्जी के विरुद्ध जा कर अपने से नीची जाति की लड़की से घर से भाग कर प्रेमविवाह किया था, जिसकी वजह से उन्होने बहू को नहीं अपनाया था, और बेटे बहू को घर से निकाल दिया था। परिणामत: उनका बेटा रूठ कर बहू के साथ दूसरे शहर में जा कर बस गया था।
अकेलेपन का दंश सहती वह कितनी बार सोचती, बेटे बहू को जाकर मना लाये। लेकिन हर बार उनका झूटा अहं और दंभ उसके आड़े आ जाता और फलस्वरूप अकूत धन दौलत की स्वामिनी वह निपट अकेली मात्र डफ़ी के साथ अपनी विशाल कोठी में एक एकांगी जीवन जीने को विवश थी। उन्होने बेटे को अपनी इच्छा से विवाह करने के अपराध की सजा बहू को न अपना कर उन दोनों को दी थी और बेटे का जी दुखाया था। लेकिन उसकी इतनी बड़ी सजा कि बेटे ने एक बार भी नहीं सोचा कि अकेली वृदधा माँ कैसे भांय भांय करती विशाल कोठी में अपने दिन काटेगी? और घोर संताप के दो आँसू उनकी आँखों से ढुलक पड़े थे।
कि तभी उनकी नजर डफ़ी पर पड़ी थी जो उनके गिरने के बाद से एक क्षण के लिए भी उनकी आँखों से ओझल नहीं हुआ था। दिन रात हर पल उनकी एक नजर को तरसता उनके निकट बना रहा था। क्या रिश्ता था उनका इस नि:स्वार्थ भोले जीव से?
तभी एक ख्याल उनके मन में अंकुरित हुआ। क्यूँ न वह इन नोबल क्रीचर्स के लिए एक शेल्टर खुलवा दे? उनके नाम पति द्वारा छोडी गई बेहिसाब संपत्ति का भी सदुपयोग हो जाएगा और वह अपने डफ़ी के ऋण से भी उऋण हो जाएगी।
हाँ, यही ठीक रहेगा। वह डॉग्स के लिए एक बढ़िया सर्वसुविधासम्पन्न शेल्टर खोलेगी। इस महत कार्य में अपनी बची खुची जिंदगी लगा देगी।
“ठीक हो कर अपने इस विचार को मूर्त रूप देना ही है”, यह सोच वह असीम संतोष से डफ़ी की ओर देख कर मुस्कुरायी थी। लाड़ से उसे सहलाते हुए वह होठों ही होठों में बुदबुदाई थीं, “क्या रिश्ता है रे मेरा तुझ से जो इस जनम में मुझ पर इतना कर्ज चढ़ा दिया।
और अनायास उनकी और डफ़ी, दोनों की आँखें झर झर बहने लगी थीं।