मौलश्री आज बेहद गमगीन थी। सांझ का सुरमई अंधेरा धीरे धीरे गहराने लगा था। जैसे जैसे रात्रि की कालिमा अपने पंख फैला रही थी, मौलश्री के अन्त:स्थल में अंतहीन निराशा का बियाबान शून्य पसरता जा रहा था। घर भर में मरघट का सा सन्नाटा छाया हुआ था।
“उफ मृग, ये कैसा दु:ख दे दिया तुमने अपनी मौलश्री को। कल ही तो तुमने पापा को कितने विश्वास से आश्वासन दिया था, ‘‘मेरे घर में मौलश्री की आंखों में कभी आंसू नहीं आएंगे, यकीन करिए।’’ और इतनी जल्दी तुम सब कुछ भूल बैठे।”
कि अन्तर्मन के एक कोने से सोच उठी, ‘नहीं, नहीं, एक बिना रीढ़ के इंसान के लिए मैं अपने आंसू क्यूं बहा रही हूं? निरा नपुंसक ही तो मृग, अपने माता पिता की हर जायज, नाजायज मांगों के सामने घुटने टेकने वाला पौरुषहीन अस्तित्व। उसने तो विवाह के पहले ही अपना असली रूप दिखा दिया, विवाह के बाद तो पता नहीं वह क्या करता? अच्छा हुआ जो अभी उसका वास्तविक चेहरा मेरे सामने आ गया।’
इस सोच ने उसके क्षुब्ध मनोमस्तिष्क को तनिक राहत का अहसास दिया और वह चुपचाप अपनी आंखें मूंद सोने का उपक्रम करने लगी, लेकिन आज मानो नींद उससे कोसो दूर थी।
सोने का प्रयास करते करते कब मन पखेरू गुजरे दिनों से आंख मिचौली खेलने लगा, उसे अहसास तक नहीं हुआ।
नाम के अनुरूप हवा के झौंके के सदृश्य चंचल, बेहद बातूनी, खुशमिजाज मृग ने उस पर अपने दिलकश चुम्बकीय व्यक्तित्व की छाप ऑफिस में उसके शुरूआती दिनों में ही छोड़ दी थी। उन दिनों उसने हाल ही में वह ऑफिस ज्वाइन किया था।
उस दिन मौसम बेहद सुहाना था। हलकी हलकी रिमझिम बारिश हो रही थी। ऑफिस के सभी वरिष्ठ अधिकारी एक सेमिनार में भाग लेने दूसरे शहर गए हुए थे। सो ऑफिस में निश्चिंतता का माहौल था। सबके सब बातें ज्यादा कर रहे थे, काम कम। लंच ब्रेक में जो चुटकुले सुनाने का दौर शुरू हुआ तो वह सिलसिला देर तक जारी ही रहा।
मृग का चुटकुले सुनाने का अंदाज इतना निराला था कि कुछ ही देर में उस पर वहां बैठे सभी लोगों का ध्यान केन्द्रित हो गया। मृग ने एक के बाद एक मजेदार चुटकुले अपने मनमोहक अंदाज में सुनाकर सबको मंत्र मुग्ध कर दिया। उसका बातें करने का अंदाज कुछ इतना अनोखा था कि मौलश्री उससे खासा प्रभावित हो गई थी। मौलश्री स्वयं एक बेहद गंभीर, शांत एवं अन्तर्मुखी लडक़ी थी। उसे मृग का बातूनी, हाजिर जवाब स्वाभाव बेहद भाता। उसके पास बैठती तो उससे दूर जाने का मन ही नहीं करता उसका। मन करता घंटों उसकी बातें सुनती रहे।
वक्त के साथ परस्पर आकर्षण बढ़ता गया और कब दोस्ती की राह चलते चलते उस पर प्यार का रंग चढ़ गया था, दोनों को ही उसका अहसास तक न हुआ था।
मौलश्री और मृग ऑफिस में अमूमन साथ रहते। दोनों की ही विवाह की उम्र हो आई थी और उनके घरों में उनके रिश्ते की बात चल रही थी। मौलश्री के घर में उसकी वृद्धा दादी को पोती के विवाह की बहुत जल्दी थी। पहले कुछ दिन तो मौलश्री अपने विवाह की बात को टालती रही। लेकिन जब घर में लडक़े देखने दिखाने का कार्यक्रम तय हुआ, मौलश्री ने मृग के विषय में अपनी मां को बताया।
मौलश्री के माता पिता दोनों ही खुले विचारों के थे। थोड़े से प्रारंभिक प्रतिरोध के बाद वे मृग से मिलने को तैयार हो गए।
प्रथम मुलाकात में ही मृग उन्हें बेहद पसंद आया। फिर देखने में सुदर्शन, अच्छे पद पर कार्यरत धनाढ्य परिवार के युवक को ना कहने का कोई सवाल ही नहीं था। सो मृग की नौकरी, तनख्वाह आदि के विषय में जांच पड़ताल कर वे उसकी ओर से आश्वस्त हो गए और एक दिन मौलश्री के माता पिता बेटी के रिश्ते के लिए उनके घर पहुंच गए।
मृग के माता पिता दोनो ही शहर के जाने माने सीनियर डॉक्टर थे। बेहद सम्पन्न, प्रतिष्ठित परिवार था उनका। उनकी तुलना में मौलश्री का परिवार बहुत दबा हुआ था। मौलश्री के पिता एक निजी संस्थान में महज एक क्लर्क थे। छोटी सी तनख्वाह में बहुत कतरब्योंत कर उन्होंने अपने दो बच्चों को पढ़ाया लिखाया था। मौलश्री के विवाह में कुछ अधिक खर्च करने की सामर्थ्य न थी उनमें। किराए के छोटे से फ्लैट में रहते थे। उधर मृग के माता और पिता दोनों की निजी प्रेक्टिस बहुत अच्छी चलती थी। उनके ऊपर लक्ष्मी जी का वरद हस्त था। आंगन में पैसा छमाछम बरसता।
मृग की मां को मौलश्री और उसका फटेहाल परिवार तनिक भी न भाया। उन्हें चाहत थी अपने स्मार्ट सर्वगुण सम्पन्न बेटे के लिए अपने स्तर के परिवार की लडक़ी, जो समाज में उनकी सम्पन्नता का मुकाबला कर उनकी प्रतिष्ठा में चार चांद लगाती।
जब मृग ने मौलश्री के विषय में मां को बताया तो सबसे पहले उन्होंने उस पर प्रश्न दागा, ‘‘मौलश्री के पिता क्या करते हैं?” जब मृग ने उन्हें बताया कि वे सरकारी महकमें में क्लर्क के पद पर कार्यरत हैं, मृग की मां उस पर बहुत बिगड़ी और उन्होंने मृग को समझाया, “रिश्ता हमेशा बराबरी वालों में शोभा देता है। मैं तुम्हारी शादी एक फटीचर क्लर्क की बेटी से हर्गिज नहीं करूंगी। ऐसे फटेहाल लोगों से रिश्ता जोडक़र हम समाज में मुंह दिखाने के लायक नहीं बचेंगे। लोग हंसेंगे हम पर बेटा, समझा करो, रिश्ता हमेशा बराबरी वालों में करना ही दोनों पक्षों के लिए ठीक रहता है।”
मृग की मां जहां अत्यंत महत्वाकांक्षी और हिसाबी किताबी धन लोलुप महिला थीं, उसके पिता उतने ही फक्कड़ ओर बेपरवाह इंसान थे। वे सदैव अपने मन की बात सुनते थे और वे जिंदगी में धन से अधिक भावनाओं और संवेदनाओं को अहमियत देते थे। मृग ने जब उन्हें बताया कि वह एक लडक़ी को चाहता है और उससे विवाह करना चाहता है तो उन्होंने बिना एक क्षण सोचे समझे उसे अपनी पसंद की लडक़ी से विवाह करने की अनुमति दे दी। उन्होंने पत्नी डॉक्टर काजल को भी यही समझाया कि बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी होनी चाहिए। उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह करना सही नहीं होगा।
इस बात पर उनके घर में भयंकर महाभारत मचा। जहां डॉक्टर काजल अड़ी हुई थीं कि यह विवाह किसी कीमत पर न हो, मृग और उसके पिता चाहते थे कि यह विवाह हर हालत में हो। मृग की खुशियों का हवाला देकर पिता बड़ी मुश्किल से काजल को मौलश्री के घर ले जाने के लिए तैयार कर पाए।
मृग पहली बार मौलश्री के घर आया था। लेकिन उसके घर आकर उसे मां की बातों में छिपी सच्चाई का भान हुआ था। अपने और मौलश्री के स्तर में जमीन आसमान का अन्तर उसे भी खलने लगा था। मौलश्री के दो कमरों के हाउसिंग बोर्ड के निचले आय वर्ग के दड़बेनुमा फ्लैट और वहां रखी सस्ती कुर्सी टेबिल वाले ड्राइंग रूम में उसका जी घुटने लगा, और अब उसे अपने और मौलश्री के परिवार के स्तर में अंतर का वास्तव में अहसास हो रहा था। मन ही मन कुछ कुछ पछतावा भी हो रहा कि मौलश्री से विवाह उसके लिए घाटे का सौदा रहेगा। मां की तरह बेहद धनलोलुप, हिसाबी किताबी असंवेदनशील स्वभाव उसका भी। मौलश्री के घर में कदम रखते ही उसके कानों में मां के वहां जाने से पहले कहे गए शब्द गूंजने लगे थे...‘‘एक फटीचर क्लर्क की बेटी से शादी करके तू कभी सुखी नहीं रहेगा।’’
मां की कही बातों का उस पर बहुत गहरा असर हुआ था। मौलश्री के घर बैठे बैठे सारे वक्त वह बस यही सोचता रहा कि मौलश्री से रिश्ता बनाकर क्या उसने वास्तव में भूल की थी। मौलश्री के परिवार की गरीबी ने मौलश्री जैसी सोने सरीखी लडक़ी की अच्छाइयों को ग्रहण लगा दिया था।
लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। तीर तरकश से निकल चुका था। डॉक्टर काजल इस बेमेल रिश्ते पर अदम्य क्रोध से उबलती मौन होंठ भींचे मौलश्री के घर में पूरे वक्त बैठी रही थी। डॉक्टर आनन्द ने ही मौलश्री और मृग के विवाह की बात मौलश्री के पिता से तय की थी ओर एक माह बाद उन दोनों के रोके की तिथि नियत कर दी थी।
इधर मौलश्री के घर से लौटकर मृग के जेहन में मौलश्री के साथ अपने विवाह की बात सिनेमा की रील की मानिंद चलती रही थी। मौलश्री और मृग के स्वभाव में जमीन आसमान का अन्तर था। जहां मौलश्री बेहद संवेदनशील, भावुक, अन्तर्मुखी, एक एक शब्द नाप तौलकर बोलने वाली युवती थी। वहीं मृग एक बेहद एक्ट्रोवर्ट, बिंदास स्वभाव का फक्कड़ मस्तमौला इंसान था। जिंदगी को कभी गंभीरता के चश्मे से देखना उसकी फितरत में न था।
कल सारी रात मृग मौलश्री और अपने रिश्ते के बारे में सोचता रहा था। और अब इस विषय में गंभीरता से सोचने पर उसे मौलश्री के अपने आप में दबे सिमटे अन्तर्मुखी व्यक्तित्व में भी खामियां नजर आने लगी थीं। अपने स्वभाव के विपरीत जीवन में शायद पहली बार उसने इतनी संजीदगी से किसी मसले पर सोचा था। और बहुत गहरा विश्लेषण करने पर उसने मन ही मन स्वीकार किया कि मौलश्री का साथ उसे अब कुछ कुछ उबाऊ लगने लगा था। उससे मिलकर उसे तनिक भी वैसा रोमांच न होता जो कि उसके हिसाब से उसे होना चाहिए था। वह समझ नहीं पा रहा कि मौलश्री जैसी अपने आप में गुम गंभीर स्वभाव की लडक़ी के साथ जीवनभर बंधकर उसे कोई खुशी भी मिलेगी या नहीं?
आज ही मृग और मौलश्री का रोका था। और मृग अपनी इस द्विधापूर्ण मन:स्थिति से अभी तक बाहर नहीं निकल पाया था। एक बार उसे लगता, मौलश्री जैसी शांत, सुलझी हुई, परिपक्व लडक़ी से विवाह कर वह बेहद सुखी रहेगा, वहीं दूसरी ओर उसे यह भय खाये जा रहा कि जब अभी उसे विवाह से पहले उससे बातें कर उसके साथ सारी जिन्दगी बिताने का किसी तरह के आकर्षण का अहसास नहीं हो रहा तो विवाह के बाद क्या होगा। मानसिक ऊहापोह की इस द्वंद भरी मनोदशा में वह अपने रोके में पहुंचा था।
मृग की मां चुप बैठने वालों में न थी। वह एक मजबूत इरादों वाली दृढ़ निश्चयी महिला थी। एक बार जो ठान लेती, उसे आखिरी दम तक हासिल करनेके लिए जी जान लगा देती। सो रोके में उसने बिना पति और बेटे को बताए इस विवाह को रद्द करने का अपना अंतिम हथियार छोड़ा था। मौलश्री के फटेहाल दीनहीन परिवार से रिश्ता जोडऩे में कोई जगहंसाई न हो, सो डॉक्टर काजल ने इस कार्यक्रम में मात्र अपने कुछ नजदीकी रिश्तेदारों को ही आमंत्रित किया था।
रोके की रस्म शुरू होने वाली थी। पंडितजी अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे और पूजा शुरू करने ही वाले थे कि डॉक्टर काजल ने यह रिश्ता तोडऩे के लिए अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा। उन्होंने तेज स्वरों में मौलश्री के पिता से कहा, ‘‘शर्मा जी, हम खानदानी रईस हैं, हमारे परिवार में आज तक जितनी भी शादियां हुई हैं, सब में दामाद बेटी का टीका सोने की गिन्नियों से किया जाता है। मिलनी में भी मैं चाहती हूं कि आप मेरे सभी रिश्तेदारों को एक एक गिन्नी दें। ओर हां, गिन्नी अभी इतनी जल्दी कहां मिलेगी, यह बहाना मत बनाइयेगा। शहर के नामी गिरामी ज्वैलर पुखराज ब्रदर्स से हमारे घरेलू ताल्लुकात हैं। यहां से सिर्फ़ पांच मिनिट की दूरी पर है उनकी दुकान। आप कहें तो मैं उन्हें फोन कर करीब 30 गिन्नियां मंगवा दूं?’’
‘‘तीस गिन्नियां, समधन की यह अनपेक्षित भारी मांग सुनकर मौलश्री के पिता को दिन में तारे नजर आने लगे थे। उन्हें लगा वो अभी गश खाकर गिर पड़ेंगे। सो उन्होंने हाथ जोडक़र बड़ी ही कातर मुद्रा में समधन से कहा था, ‘‘डॉक्टर साहिबा, आप ये क्या कह रही हैं? आपने तो कहा कि आपकी कोई मांग नहीं है, फिर यह क्या है? यह तो आप हमारे साथ ज्यादती कर रही हैं। आपको पता है कि मैं एक बेहद इमानदार सरकारी मुलाजिम हूं। इमानदारी और संस्कारों का भरपूर दहेज दे सकता हूं मैं आपको, लेकिन क्षमा करें, मैं आपकी यह मांग पूरी नहीं कर पाऊंगा।”
दूर स्टेज पर बैठी मौलश्री ने जब पिता को दीनहीन भाव से हाथ जोड़े मृग की मां के सामने खड़े देखा तो वह दौड़ी दौड़ी पिता के पास आ गई। भावी सास की यह नाजायज मांग सुनकर पहले तो उसे भी बहुत सदमा पहुंचा और उसने मृग को इशारा कर एक कोने में बुलाया और उससे कहा , ‘‘मृग, यह गिन्नियों का क्या चक्कर है? तुम चुप कैसे खड़े हो? कुछ कह क्यूं नहीं रहे अपनी मम्मी को? अचानक 30 गिन्नियों का इंतजाम करना कोई हंसी मजाक नहीं है।’’
‘‘अब मैं मम्मी से क्या बोलूं? मौलश्री हर माता पिता के कुछ अरमान होते हैं, कुछ सपने होते हैं अपने बच्चों के विवाह को लेकर। उनकी अपेक्षा होती है। इसमें गलत क्या है।”
लेकिन मृग के इन शब्दों ने मौलश्री को एक बहुत बड़ा झटका दिया था। उसने सपने में भी नहीं सोचा कि वह मृग जिस पर वह आंखें मूंद कर भरोसा करती थी, वह आज गिरगिट की तरह यूं अपना रंग बदल लेगा। मृग के मुंह से ये अल्फ़ाज़ सुनकर मौलश्री मानो जीते जी मर गई।
उससे अपने पिता की माली हालत छिपी न थी। सो एक क्षण में सोच विचार कर उसने मन ही मन एक निर्णय लिया और हाथ जोडक़र मृग की मां से कहा था, ‘‘आंटी, हमें क्षमा करिए, यह संबन्ध नहीं हो पाएगा, मैं इस रिश्ते को यहीं तोड़ती हूं।’’
अंधा क्या चाहे दो आंखें, डॉक्टर काजल के मन की मुराद पूरी हो गई थी। उनके कान यही सुनने को तो तरस रहे थे। सो बिना एक क्षण गंवाए वह चिल्ला उठीं थीं, ‘‘मृग, ले, बात सुन अपनी चहेती की, अरे आजकल की लड़कियों में जरा शर्म हया नहीं है, अपने मुंह से खुद अपना रिश्ता तोड़ रही है। अरे हमें भी कोई शौक नहीं है तुम जैसे कंगालों से रिश्ता जोडऩे का। मृग इधर आओ, मैं अभी के अभी यह रिश्ता तोड़ती हूं। अब यह रोका नहीं होगा। चलो सब लोग वापिस।’’ बहुत सोच समझकर मौलश्री और उसके परिवार की प्रतिष्ठा और स्वाभिमान को जानबूझकर अपने कटु शब्दों से रौंदते हुए डॉक्टर काजल ने इस अनचाहे रिश्ते को खत्म करने के लिए अपना अचूक हथियार छोड़ा।
मृग के पिता हक्के बक्के, मूक दर्शक बने सारा माजरा देख रहे थे। उन्होंने बच्चों की खुशियों का वास्ता देते हुए पत्नी से कहा...‘‘अरे काजल, चुप हो जाओ, दोनों बच्चों की जिन्दगी का सवाल है। क्यूं यह रिश्ता तोडक़र दोनों की जिन्दगी बर्बाद करने पर तुली हुई हो? मौलश्री बेटा, मैं तुम्हें यह वचन देता हूं यह रोका होगा और जरूर होगा। हमें कोई गिन्नियां विन्नियां नहीं चाहिए। पंडितजी आप रस्म की तैयारी कीजिए।’’
लेकिन भोले पिता को यह नहीं मालूम कि यह सब पत्नी और अप्रत्यक्ष रूप से बेटे की मंशा के अनुरूप हो रहा था। वे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि उनका बेटा मां की बातों में आकर अब यह रिश्ता करने का इच्छुक नहीं था। आज गरीबी को एक बार फिर से मुंह की देखनी पड़ी थी। अमीरी ने गरीबी के मुंह पर जोरदार तमाचा मारा था।
आनन फानन में दोनों पक्षों के लोग अपने अपने घरों के लिए रवाना हो गए थे।
अपेक्षा के विपरीत मौलश्री से रिश्ता तोड़ मृग को एक अजीब सी राहत का अहसास हो रहा था। संवेदना शून्य मृग को नहीं पता कि उसका यह निर्णय मौलश्री जैसी भली, भावुक लडक़ी की खुशियों पर तुषारापात कर देगी।
इस रिश्ते के टूटने से मौलश्री के परिवार को बहुत सदमा पहुंचा था। मौलश्री ऊपर से मौन थी लेकिन उसके अन्तर्मन में हाहाकार मचा हुआ था।
लेकिन समय को इंसानी खुशियों और गमों से क्या सरोकार? वह तो अपनी ही गति से उत्तरोत्तर आगे बढ़ता ही जाता है। मौलश्री एक बेहद संवेदनशील युवती थी। मृग के यूं इतनी बेरूखी से यह रिश्ता तोड़ते देख वह मानो पत्थर हो उठी थी। प्यार जैसी शाश्वत भावना से उसका विश्वास उठ गया था।
वह एक सुशिक्षित सुयोग्य अच्छे पद पर कार्यरत युवती थी। अपने स्तर की बिरादरी में उसके लिए लडक़ों की कमी न थी। हर तीसरे दिन मौलश्री के पिता बेटी के लिए नया रिश्ता ढूंढते।
मृग से रिश्ता टूटे वर्षभर होने आया था। लेकिन मौलश्री उससे अलगाव के आघात से अभी तक नहीं उबरी थी। अपने रिश्ते की बात चलने पर वह कोई न कोई बहाना बनाकर रिश्ते के लिए न कर देती।
उस दिन मौलश्री अपने एक सहकर्मी के विवाह में शामिल हुई थी। बारात लडक़ी वालों के द्वार पर आ चुकी थी। वर पक्ष के लोग बारात में तेज संगीत की धुन पर मदहोश थिरक रहे थे। अपने आप में सिमटी मौलश्री एक कोने में खड़ी बारातियों का नृत्य देख रही थी कि तभी उसकी दृष्टि नृत्य करते एक जोड़े पर पड़ी तो मानो उस पर चिपक कर रह गई। पूरे बरस भर बाद उसने मृग को देखा था। आज भी उसे अपने सामने देख उसके हृदय के तार झंकृत हो उठे थे। उसके भीतर कुछ पिघलने लगा था। कि दूसरे ही पल उसने देखा था, मृग अकेला नहीं था। वह एक बेहद खूबसूरत युवती की बांहों में बांहें डाले एक-दूसरे की आंखों में झांकते हुए बहुत अंतरंगता से नृत्य कर रहा था। उसके चेहरे पर उल्लास छलका पड़ रहा मानो दुनिया भर की खुशियां वहां सिमट आई हों। उस एक पल में मौलश्री के भीतर कुछ चटख कर किर्च-किर्च बिखर गया। वह मृग के प्रति उसका अटूट प्यार था। उस एक लम्हे में मौलश्री मुक्त हो गई थी मृग के प्रीत बंधन से। मृग को एक अन्य युवती के साथ बेइंतिहा खुश और मगन देख कर उसके प्रति उसकी कोमलता भावनाएं मानो मर गई थी। उसकी आत्मा अब आजाद थी मृग के नेह बंधन के शिकंजे से। और उसी पल उसने निर्णय लिया कि वह भी अपनी खुशियां ढूंढेगी एक फिर से। वह भी विवाह के बंधन में बंधेगी। खुशियों को अपने दामन में समेटेगी।
नई उम्मीदों का विहान हो चुका था। और आगत सुखद भविष्य के हंसीं ख्वाब उसकी आंखों में सजने लगे थे।