प्रकाशित कहानियां

रेणु गुप्ता मुख्यतया मानवीय संवेदनाओं से छलक़ती हुई भावप्रवण एवं हृदयस्पर्शी सामाजिक एवं पारिवारिक कहानियाँ लिखती हैं। उन की कहानियों का कैनवास विषयों में विविधता के इंद्रधनुषी रंगों से सजा हुआ है। उन्होंने राष्ट्र-प्रेम,वर्ग भेद, मातृभूमि की बलि वेदी पर शहादत, दहेज समस्या, पुत्र पुत्री के समान अधिकार, गरीबी का दंश, सिंगल माँ का संघर्ष, भ्रष्टाचार, कोविड काल का जीवन पर प्रभाव, युवाओं में लिव–इन की प्रवृति, कामकाजी नारी का संघर्ष, महिला शिक्षा, नारी-पुरुष समानता, स्त्री शोषण, तलाक, दांपत्य जीवन के विभिन्न आयाम, तलाक़शुदा माता-पिता की संतानों की पीड़ा, जैसे विविध विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है।

साथ ही उन्होंने अपनी कहानियों में मानव मन की गहरी कंदराओं में झाँकते हुए मनोविश्लेषणात्मक रूप से हरएक पात्र, घटना और परिस्थिति के साथ न्यायसम्मत ढंग से अपने लेखकीय धर्म का निर्वाह किया है। परिणाम स्वरूप पाठक कहानियों के पात्रों के साथ एकात्म हो उनके साथ सुख और दुख की अनुभूतियों का अनुभव करते हैं, उनके साथ जी सकते हैं, मर सकते हैं।
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जीवन संघर्ष राजस्थान पत्रिका से साभार
पश्चाताप
नियति
मैं हूँ ना
सुकून राजस्थान पत्रिका से साभार
प्रायश्चित
जिद राजस्थान पत्रिका से साभार
मकसद
धूपछांव
तीन जोड़ी भूखी आंखें मधुमती (राजस्थान साहित्य अकादमी) से साभार
द शो मस्ट गो ऑन
मोल-भाव
मार्गदर्शन
स्वविवेक राजस्थान पत्रिका से साभार
कुमकुम बिंदी कंगना राजस्थान पत्रिका से साभार
कर्मों की गति राजस्थान पत्रिका से साभार
किनारा राजस्थान पत्रिका से साभार
क्या रिश्ता है रे मेरा तुझसे
वो फरिश्ता सांध्य टाइम्स से साभार
अब पछताए क्या होत
शीर्षक: ज़िल्लत
हैपी वैलेंटाइन्स डे
बसंत आ ही गया
साल भर का त्योहार
ज़िन्दगी की आज़माइश